वसिष्ठ ऋषि का दर्शन | Vasishtha Rishi Ka Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नडावंदका सप्तम मण्डल ' बासिष्ठ मण्डल ' करके प्रसिद्ध है ईपर्म 1०४ सूक्त हें और ८४१ मंत्र हैं। इसके भषातेरिक्त वावंद्त वासप्ठमंत्र हैं।वे अष्टम मण्डछक्े ( ८|८७ ॥ सतासीवे सूक्तमें ६ मंत्र हैं और नवम मण्डछ-सोममण्डलमें ५३ मंत्र है; सूक्त ६७१९-३२ और ९०1१-०६ तथा 3७1१-३०; १०८। १४-१६ / | ऋग्वेदक १०॥१३७|७ वां एक मंत्र है। और अय्ववेदमें ४४ मंत्र हैं । इस तरह कुल सत्र 5४५ हुए। इनके अतिरिक्त यजवेंदमें तथा ब्राह्मगग्रंथोंमें थोडेसे वासेष्ठ मंत्र होंगे परतु उनका संग्रह यहां किया नहीं हे । ऋष्वेदके द्वितीय मण्डलसे पाहिले छ मण्डल सप्तकऋषियों के उज्यतः हैं ( मण्डल २ ) गृत्समद्‌, ( ३) विश्वामित्र, (४) वामदव, ( ५ ) अन्रि, ६ ) भरदाज ( ७) वाशीए ये बडे कि है। अथम मण्डलमें शतची ऋषि हैँ । दशम मण्डलमों जाल छाए अनेक ऋष हैं। नवम् मंडल सोमदेनताफा है और अड्टस महज भरी फूल कार छाल सूृक्तेचाल ऋषियों का हे ता पत्र छस्य आर आचीन अर्थात्‌ माननीय ऋषि बासीए़ हैं। असाल्य इसका सण्डल प्रथम प्रकाशित किया है विवामित राजा था। वह बआह्ण होनेकी इल्छा करके प्रपस्या करने छगा | उसकों आह्यण कहके घोषणा फैरनेंका मान वसिष्ठक था, क्‍्योंद्रि उस समयके ब्राह्मण समुदायमें बसिष्ठ ऋषि सख््य थ। वहिष्ठनें विश्वामित्रकों त्राद्यम मान छिय। तो न छाय उसका जआाड्ाण मानने लगे इतना महत्व वसिष्ठुक था। नवीन स्तोश् भ्ल्ध नवीन स्तोत्र करता हैं ण्सा भंत्रोंमें है-..- वेश्चिप्ठमन्रोंमे निम्नलिखित ५ हद बल।... अज्ञये उच'... अज्ञनिएछ । ऋ० ७८1६ यह स्तोत्र अग्निके लिये बनाया है | १०५ अभी | स्थां व्धचस्ति मतिमिः: बलसिए्ा। । ऋण ७1११॥३ दे अग्ने ! वसिष्ठ लोग अपने स्तोत्रोंसे तेरा वर्ण: करते हैं. । १५० वासिप्ठः बल्माणि उपसखसर् | के, जप्टा४ १ वसिष्ठ स्तोन्रोकी निर्माण करता रहा । १९० है इन्द्र | य थे पूर्व ऋपयो' ये सस्ता अह्याण जनयन्त ब्रिप्माः । ऋ० ७उ२२९।-- हैं इन्द्र जी प्राचीन ऋषि ओर जो अर्वाचीन बिम्र स्तोत्र करते हैं । र४५ उप बह्ञाणे शाणव इम्ता न।। ऋ० ७४२५४ ये हमारे स्तोत्र श्रवण कर । है २८७ यथा पूछना अग्क्णो। कापीएणा। कऋ० उ।२५। ४ जिन प्राचोन ऋषियोंक स्तोच् तुमने स॒ने थे | र३ष१ जुषन्त हब अह्म करियमाण मबीयाः। ऋण ४३५१४ ते किस जानेबाऊे इस खोमका सब देव स्वीकार करें | २४८ हमा खुतृक्ति... कृप्ये . ४३६1६ इस नवीन लाचकी वरना हूँ ५ १५९ छथ॑... ब्रह्म कृष्यन्तों,. 3३७४१ हम वसिष्ठ स्तोत्र करते हैं; जर० भब्मातने सबानि ऊतानि बहा अुजुपन इेसानि । 3६१।६। ये लवीन किये ममनीय रोम हैं । | ०४ पुरुषणि अजि ब्रह्माणि चक्षाथे: ऋषीणाओ । ४७०।५-- बहुतसे ऋषियोंके किये सोनम तुम देखते हो । ५23५ इय...सत्ताक्तत्रह्न इच्द्राय वाजिणे अकारि | ७५५७९ यह उत्तम स्तोन्न बानघारा इसके लिये किया भाचीय। । कु




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