अथर्ववेदीया पैप्पलाद संहिता | Atharvavediya Paipplad Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। १९. ७. ३. १२ ] पेप्पछादलंदििता [ १९. २७. १२
1 यययोर अबयान्प ? भशीय ।
* [ इंढ ततू प्र ह्ये यू छुशुमा तत् परि ॥२॥ # # १; हद तत् पं इंवे बत सुभमात् # #
1 यायस पतिर नि यच्छतु मय्य एव तन््वं मम । है
माप ज्यायस् ते अकरन् मा श्ुतेग वि राधिषि ॥३॥ # धायस् # अकर मां शंतेन वि राषिकि
1 अमोधघम् अस्मार्क भ्रास्तम् अम्ने द्रधिणम् भात् कृधि | अमोकम्...भत् +
1 मध्यमेष्ठा व्चेखत्य भायुष्यं बचेसे कृधि ॥४॥
बनुष्य विश्यवेषेषु यनुष्व स्व शुदस्पतों ।
! घृतेन प्रजां बलुते घतिग रयिम् अहनुते ॥५॥
घृतेनायुष्यं व्चेस्यं देषेभ्यों बनुते परि। ....देवभ्यों # #
पजेन्य [>] पिप्पर तुष्यान् नयो गर्भ रवस्तये ॥६॥ + # तुस््यां ...
मर्यादा ब्रद्मदेवयीर आयुच्यं बचेसा सूजम् ॥७॥
1 यथा इस्ती इस्तिस्या पंदेन पद्म् अन्य अगात् । # # दस्थिन्या,..
1 || एवा स्वम् अग्ने बचेख [न] पदेन पदम् अन्व् इंद्दि ॥८॥ यवा न्यम् ,..भहि
यथा रथस्य चक्रेण] थि पथ* पांखुम् अस्यामः । ...पॉसम् भस्वततः
1 एवाइ मनो व्यू अस्यामि हद खंघननायथ कम ॥९॥ यवाह .,. वल्यदि # #
इन्द्रस्य प्रथमं बयो देवाना[म्] अपर बचः । # $ व्च ....
1 तृतीयम् अश्विनो [२] बचस् तेन गां घानयामलि ॥१०॥ ह
। शौ७.१००.! उद् अस्य ध्यावों विधुरो दिवं ग्रधाव इवेताम्। उदित स्थानों विविरों # # इतेस्त
शोखनाव् अतिशोचनाव अस्योच्छोखनो हृदः ॥११॥ ५“ वछोचन #
1 शोचया अभि शोचया दीपयो अभि दीपयः । शोचयाब् ...
अद्देर अग्ने थिष त्वं तुणम इव कट्यल दृह ॥१२॥
1 सेथ त॑ निषक्तारा ? थेग॑ वोदक त्वम । सीद तु...
कृष्णा थां गौस सारस्थती याथात्री ? कृष्णतमा गो £ कृष्णात् कृष्णवरमेनी | ऊुष्णां...'नि
॥ अदश्योचिष्क यथा रुपम् एवेद मामक शिरः । झोचीको... ममर्क #
| यथाज्रो अभिषिक्तो डब्यदाको ? यथासितः ॥१४॥ ...यथसितः
अमुष्याज्वस्य कस्मष यथा दाबाद् दह्ममाना[व्] कष्णो ज्वलो वि ध्यंसते। | भमुष्यंजस्य # एयायवा # #॥ # # व #
॥ भद्दिषाद् ? अस्य तन् मुखम् एवव् मामकं शिरः ॥१७॥ ॥का २॥ # # ते। # एेद # # ॥१॥
1 १९.२७
शो ७.७१.१ यत् कि थासो मनसा पच्ू व वाया यहेर जुद्दोति यजुषा दृविभिः | यदि # # # यश...
तन् मृत्युना निक्ेतिस् संबिदाना पुरा दृष्टाद् आज्य इम्तव् अस्थ ॥१॥ तं...दृध राज्यों # #
शोर यातुधाना निऋतिद भाव् उ रक्षस् ते उस्य प्रस्त्व् अनृतेन सत्वम् | # # आज रक्षस ते स्व प्लिन्तू अनृतों #
| इन्द्रषिता [भा]ज्य[म् भस्य मथ्नन्तु मा तत् सं पादि यद् अलो जुद्दोति ॥ इन्द्रपपिता ... पाद् # # #
पे १६.८.२ परि त्वास्ने [पुरं बय॑ विप्रं सदस्य घीमदहि । # # इस्स् एक।
[मिषग्वर्ण दिवेदिये इन्तारं भजुराबतम् ]॥श॥ हे
घौ₹श स्थरतिर ? अधिराजों हयेगनौ संपातिनाव् इब । # “बिराजों स्मोनों संपातुनाव्
भाज्यं पृतन््यतो दृतां यो उस्मान् पृतनायति ॥४॥ # पृदन््यतों इत॑...
| पृथिव्ये धनस्पतिभ्य भोषधीभ्यो भग्नये अधिपतये स्वाहा ॥५॥ पृथ्िवी ...
अन्तरिक्षाय प्राणाय वातेभ्यो वायद्ले भधिपतये स्वाहा ॥६॥ # # बभ्यों ...
॥ दिये चश्तुपे नक्षत्रेभ्यस् सूयोयाधिपतये स्वाहा ॥७॥ # # नक्षेत्मेम्यस ...
शो २.१०९.१ पिप्पल्यस् सम् अवद्स्तायतीर जननादू अधि | # यम् भवदन्तो भाबतीत क्षणिनाद् #
ये जीवंम् अशेवामद्दे न स॑ रिष्याति पौंदषः ॥८॥ .-- भइलैगामह....
झो १ पिप्पली क्षिप्तभेषज्य उतातिविद्भेषजी । # क्षुप्रमे* उतचविश्रमेष जी
। ता देवास समर अकल्पयन् अछं जीवितया इति ॥९॥ .' मर जीबातबा बति
शो 8 असुरास ते नि खनस्तु देवास त्वोद् अवपन् पुनः । .» खानन्तु # तोद अवरपु #
॥ वातीकतस्य भेषजी [य अथो स्षिप्तस्य सेषजीम् ] ॥१०॥ वातीश्तस्थ #
को ६.१५९.१ यदू ७०१ को धद्ति मोधम् तब यत् कपोत * पदम् अग्मों कृणोति। ..हणोमि
1 यस्य दूतो प्रदिताव् इंदेतत तझी यत्राय ममो 5स्तु सृस्यवे ॥११॥ # + # इहृएषस ...
शो ३ यस् ते दूतो निश्ढेत आअगामाप्रदित< प्रहितो वा शुई नः | .. निरेतिर् # # बाद गृहन्त
(सयभलुऋ० गहन “व फमक७ पट सापुह- बम साक॒क- सु जमरइमुकण
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| बेर २ सिक- वर्क: पे पर्योमििटेड+ पा: ३७ बाई 21 चार, नार्थमटक, सिट्- नयमेंटो- ऑलिंटेंक जि हि... हे) २ 3७. जलिटि॥०. रा. नरींसे+ जहिटो५७, ब्लकियोसर रिंओडक चर पक प्विसिक- पािटक- पहशिकोक न्यलिकिशिक- है
न्यूकक न्यूज ्ययप वयक- न न न कट
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