महर्षिकुलवैभवम | Mahrishikulvaibhavam

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Mahrishikulvaibhavam by पुरातत्त्वाचर्या जिनविजय मुनि - Puratatvacharya Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न ५ )ै रफ्जह्क्ाक फ्रव्कक्चिए फ्रक्तिष्ठा जोपघपुर (मध्य छपगाव! सर तिशा पा? ) 30/0/1नए[एर, लि र्घ कक उद्श्य राजस्थान से आर अमन्यत्र भारताय संरक्तति के आधारभूत सरक्षत, पाऊूत अपभ्र श, राजस्थानी हन्दा व अन्य सापाआ से लिखित प्राचीन सन्ध का खांज करता तथा 5न्ह अकाश से ल्ाता | आचात हस्तलिखित तनन्‍्यों का संसह कर उत्तके संरक्षण की व्यध्षत्था करता आर उपयोगी ग्न्धों को सम्बान्वत विद्वानों से सम्पाब्ति करा कऋर उनके प्रकाशन की व्यवस्था करना | सावारणतः भारतीय एवं मुख्यत सस्कत व आचीन राजस्थानी के अध्ययन, अन्वेषणु, संशोध हछु अत्यावश्यक्र उत्तम अकार का सन्द्भ- 3तक-भरदढार (मुद्रित अन्‍्धालय) स्थापित करना आर उसमें देश-विदेश से झ॒द्रत विविध विषयक अलब्य-दलेध्य सर्भा अन्यों का यधासम्भव संग्रह करना | संगृहीत सामग्री से शोधकर्ता अध्येता विद्वातों को उसके अध्ययन ओर अजुसंधान सें सहायता पहुंचाना | राजस्थान के लोक-जीवन पर प्रकाश डालने वाले विविध बिपयक लोक गांद, साम्रदायिक भजन, पद्ादिक सक्तति जाहित्य एवं सामाजिक सस्कार धार्मिक व्यवहार तथा लाकक आचार-विचार आदि से सम्बन्धित सभी सकार की सामग्री की शोच, संग्रह सरक्षण, एवं प्रकाशन करते की व्यवस्था करना !




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