राही मासूम रज़ा | Rahi Masum Raza

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विह्डिग के सारे मोकर उनकी अपना मालिक मारने । विल्डिग के नौकरों को यहू वात मजूर नहीं थी। परन्तु असली कयामत तो तव आयी जब ठीक उनके बगलवाले पर्वैट में अली अमजद आ। गया। उसके परिवार में बाल-बच्चे थे ही नही। नौकर कई ये । अली अमजद के आने की खबर सुनकर वह बहुत भुनभुनाये कि भुनभुनाने का उन्हें वडा शोक था। 'सुरसिगार' वालो ने पहले उनका नाम भुनभुत चोपडा हो रखा था। बाद में मिसेज गुप्त ने उन्हें खटकजी का खिताब दिया जो सर्वेसम्मति से मान लिया गया। रमा चोपड़ा यानी श्रीमती खटक का कहना यह था कि 'सुरक्तिगार' आने के बाद ही नाथ को न जाने क्या हो गया है । पहले वह ऐसे नहीं थे । तो फिल्म के प्रसिद्ध लेखक और 'सुरसिगार' नम्बर बारह के निदासी श्री रामनाथ ने छान-बीन की और पता चलाया कि * 'मुरसिगार' आने से पहले यह 'सी' ग्रेड कलकों की एक कालोनी में रहा करते थे। बह एलेक्ट्रातिक्स की एक कम्पनी में विलकलेक्टर थे। एक सौ बानये रुपये पगार पाते थे। भत्ता ऊपर से । रमा मे क्लकों की उस बस्ती को एक हजार बानवे पगार बता रक़्वी थी । भत्ते और ऊपर की झामदनी अलग । नयी-वयी शादी हुई थी ! नयी नयी साडियाँ थी। सेये- नये गहने थे । कुछ पेसे भी थे । तो बात वनी हुई थी। पैसों को रमा ने बडी उस्तादी से मृद पर चलाना शुरू कर दिया। एक का डेंढ | क्लकों की बीवियों को पैसे की ज़रूरत तो हमेद्या ही रहती है। इसलिए कालोनी मे रमा की बड़ी इफ्जत हो गयी थी । खटकजी का भी बड़ा रोव था कि वलके सिर भुकाकर जीने का आदी होता है। फाइलो के लिए जगह बनाने के लिए वह अपनी आत्मा को सरकाता रहता है, यहाँ तक कि आत्मा मेज से नीचे गिर जाती है और उसे पता भी नही चलता । और भाडू देनेवाला, दूसरे दिन, उसे कल के कूड़े के साथ फेंक आता है। पर दिना आत्मा का हूं आदमी महलाया हुआ होता है और दूसरों की आत्मा की टोह में लगा रहता हैं । उस कालोनी का भी यही हाल था! सब सट्वजी की इम्डत भी करते थे और उनकी टोह में भी लगे रहते थे । और कालोनी का यह




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