श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग 1 | Shri Jain Siddhant bol Sangrah bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
598
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्री सेव्यावंशशत्तः
बीकानेरे शुभे राज्ये, मरोः मस्तकमणडने ।
आसीत कस्तूरिया नामा, ग्रामो धर्मविदां खनिः ॥ १ ॥
कस्त्रीव सम॑ विश्व॑, यशोगन्धेन पूरयन् |
सेठियावंशइच्षो5यम्, कुरुतेउत्वर्थनामकस् ॥ २ ॥
तस्मिन्कुले महातेजा), धार्मिकः कुलदीपकः
सेठसरजमलन्लोज्भूत , यशस्वी स्फीतकीर्तिमान् ॥ ३ ॥
तदन्वये धमचन्द्रः श्रेष्ठी ध्मरतो5मवत् ।
आत्मजास्तरय धर्मस्थ, चत्वार इव हेतवः ॥| ४ ॥
नाता$ प्रतापमन्नोष्थ, अग्रचन्द्रः सुधीवरः
भैरोदानो वदान्यश्व, हजारीमन्न इत्यपि | ४ ॥
श्रमणोपासकाः सर्वे, प्र्मप्राणाः गुणग्रियाः ।
शुणरलाकराः नूनं, चत्वारस्तोयराशयः ॥ ६ ॥
पूज्यश्रीहुक्मचन्द्रस्य, सिहासनमुपेयुप३ ।
श्रीलालाचार्यवर्य स्य, भक्ताः गौरवशालिनः ॥ ७ ||
श्रीज्ञालानन्तरं सर्वे, तत्पदसुशोभिनः |
श्रीमतो ज्वाहिराचार्यान् , तेजोराशीन प्रपेदिरे ॥ ८ ||
हजारीमन्लपत्नी तु, श्रीरत्कु वराह्यया ।
वाल्यादेव विरक्तासीत , संसारेश्वर्यभोगतः ॥ & ॥
बाणरसनिधीन्दों सा, पत्यो प्राप्ते सुरालयम् |
श्रीलालाचायवर्येम्य:, दीक्षां जग्राह साधवीम् ॥ १० ॥
श्रीमानकु वरार्याया3, अन्तेवासिन्यभूत्तदा ।
रंगूजीसम्प्रदाये च, जाता मोक्ञामिलापिणी ॥ ११ ॥
आनन्द वराख्याया:, प्रवर्तिन्याः सुशासने ।
धरमाराधयन्ती या, सच्चारित्रपरायणा ॥ “१२ ॥
३ दर
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