श्री पन्नवणा सत्र के थोकडे (भाग - तीन) | Shree Pannvana Sutra Ke Thokde (Part 3)

Shree Pannvana Sutra Ke Thokde (Part 3) by भैरोदान सेठिया - Bhairodan Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्‍ ( १३ ) श्रादि प्राण “हैं उनका नाशे करना भर्थात्‌ प्राणी की घात करना प्राणातिपात [ पाणाइवाइया ] है । प्राणातिपात से लगने वाली क्रिया प्राणातिपात क्रिया हैं। भपनी घात करना, दूसरे की घात करना धौर स्व तथा पर दोनों क्षी घोत करना इस तरंह प्रांगातिपात क्रिया भी स्व, पर और उभय के भेद से तीन प्रकार की है । (३) सक्रिय अक्रिय द्वार-- है भगवन्‌ । जीव सक्रिय है या भक्तिप है? हे गौतम ! जीव सक्तिय भी है झौर प्रिय भी है। जीव के दो भेद - संसारी और सिद्ध | सिद्ध श्रक्रिय हैं । संसारी जीव के दो मेद ~ पेलेरी प्रत्तिपन्न श्रौर. भ्रद्यलेशी प्रति- पन्न । दौतेशो का प्र्यं धयोगी श्रवस्या भर्यात्‌ चौदहवां युण- स्थान.है ) प्तेश्चौ भ्रवध्या में जीव योगों का निरोध करते हैं इस फारण ये भक्तिय हैं । भशैलेशी प्रतिपन्न जीव सयोगी होते हैं अतः वे सक्रिय हैं । (४ ) क्रिया किससे लगती है ? द्वार-जीव को प्राणा- तिपात क्रिया छेह जीव निकाय से लगती है 1 समुच्चय जीव की तरह चौवीस दंडक कहना । जीव को मृपावाद की क्रिया सभी द्रव्यों से लगती 1 इसी तरह चोबीस दंडक' कहना । जीव को प्दत्तादानंक्रिया ग्रहण घारण योग्य द्रव्यो से लगती है। इसी तरह चौबीस दंडक कहना ॥ णीव को -मंचुन क्रिया रूप एवं रूप वाले द्रव्पों से लगती है । इसी तरह चौवीस दंडफक कहना 1 जीव को परिप्रह की क्रिया सभी द्रव्यों से लगती हैं।




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