माण्डूक्योपनिषद खंड 2 | Mandyukyopnishad Khand 2

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Mandyukyopnishad Khand 2 by अज्ञात - Agyat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्छ माण्डक्योपनिषद्‌ | मौ० काए बजट. बा. “हपसिि- बज, नर बरस २2-०० ६ ब्बप्कक बबऊ2े ०९३2... स्पदो यथा वधा सर्वेषपि है उस्ती प्रकार श्राणादि व्रिफल्पको चाकप्रपश्ध: प्राणाध्यास्मविकल्प- | विषम करनेवाठ सम्पूर्ण धखिलात विषय ओड्डार एवं | स चात्मखरूपमेत,. तदमिधाय- कत्वात्‌ । ओड्वारविकारशव्दामि- पेवश सर्चः प्राणादिरात्म- जिकरुपो 5मिधानव्यतिरेकेण नास्ति | “वाचारम्भणं बिकारो नामघेयम्‌” (छा० उ० ६1 १॥। ४) “तदस्थेद्‌ वाचा तन्त्या नाममिर्दाममिः सर्व सितम्‌” “सर्व हीद॑ नामनि” इत्पादि- ओंकार ही है। और वह ( ओंकार ) आत्माका प्रतिपादन करनेवाल होनेते उसझा खरूप ही है. | तथा जकारके प्रिकाररूप शब्दोंकि प्रति- पाद्य आत्माके पिकल्परूप समल प्राणादि मी अपने प्रतिपादक शब्दोंते मित्न नहीं हैं, जैता क्रि /विकार केबड चाणीका वास और लाम- मात्र है? “उस अक्षक्ता यह सम्पूर्ण जगत बाणीरूप सूत्रद्वारा नाममयी डोरीसे व्याप्त है? “यह सब नाममय ही है? इश्यादि श्रुतियोंत्रि सिद्ध अतिम्यः । होठ है. अंत आह-- इसीडिये कहते हैं---- 3» ही सब कुछ है ओमित्येतदक्षरामिद:.. सर्व॑ तस्योपव्याख्यान॑ भूतं मबद्भविष्यदिति सर्वमोक्ार एवं । यचान्य- लिकालातीतं तदप्योझर एवं ॥ १ ॥ <» यह अक्षर ही सब कुछ है । यह जो कुछ भूत, मरविष्यत और वर्नमान है उसीकी व्याख्या है, इसलिये यह सब्र ओंक़ार ही है | इसके सिवा जो अन्य त्रिकाटातीत वस्तु हैं बह भी ओंकार ही है ॥ १ ॥ ओमिस्येदद्क्रमिद सर्व- ३० यद्द अक्षर ही सब्र छुछ है । मिति । यदिदमर्थनातमममिघरेय- | यह अमिवेय ( अ्रतिषाथ) रूप भूत वस्याभिधानान्यतिरेकात्‌, जितना पदार्यसमूह है. वह अपने




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