समरसाराम | Samarsaram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ।
जाल एल्ख---
भारतकी भूमि रलगर्मा कहीजाती है, ,वास्तवर्म यह उपाधि सत्त«
शून्य नहीं है । अवश्यही इसके सुविशाल गर्में अनन्त रलगारे
संस्थापित हैं किन्तु रत्न कह्ानेते हीरा-छाल-पत्ना आदि मल्यवान्
कंकर पत्थर ही फेल रत्न मान लियेजोय सो वात यहां नहीं है । ऐसे
पत्थर रसन तो अन्यत्र भी उपलब्ध होसकते हैं परन्तु भारतभृूमिके
पविष्रि गरम “ नवरत्न, नररल, नारीस्ल, विद्यारल, वस्तुरल और
ग्रन्य ग्लाडदि ' अमूल्य और बहुमूल्य विविध रतन वह भेरेष्गए हैं,
जिनकी अन्यत्र उपलब्धि असाध्प ही नहीं, अतम्पव भी है यहांके
किसीएक रलकों उठाकर अवोकन कीजिये-एक एफ रत्न
अनेफानेक सद्ूगुण प्रतीत होते हैं ।
यदि भारतीय रलराशिका प्रदर्शन करायाजाप तो उसके ढिये
बड़ेभारी आयोजनकी आवश्यकता है। इस छुद्काप भूमिकास्थल्मे
प्रदर्शिनी तो क्या, रत्ननाम संग्रह करनेका भी सुप्रधन्ध नहीं दो
सकता है । और सब छोड़कर यदि अन्यान्य रलेंके अतिरिक्त यहों
फेबल ग्रन्यरत्नोफ। ही प्रदर्शन फराना चाहें तो उसके लिये भीं
आज्न भावशपक सम्रय, साम्रप्री और स्व नहीं है और न उनकी
सूचीमात्र ही यहाँ देसक) हैं । इस फामके लिये मद्रचित ४ भारतमें
रत्न ” नामक पुस्तक आवश्यक है । किन्तु ग्रन्यस्लॉमसे नगनेका
जो एक रत्त आज हमोरे हाथमें है, फेवड उसीका यहाँ कुछ परिचय
देना उचित, आवश्यक और छामदायक समझते हैं 1
इस ग्स्यरत्तका नाम-समरसार”है। इसको श्रीरामचन्द् सोम*
याजीने स्वस्शाखोंक सार छेकर ८५ पचाशों छोकोमें संग्रह किया
६। इसमें छोटे छोदे सौर उपयोगी केवठ दश प्रकरण वर्णन किये
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