समरसाराम | Samarsaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । जाल एल्ख--- भारतकी भूमि रलगर्मा कहीजाती है, ,वास्तवर्म यह उपाधि सत्त« शून्य नहीं है । अवश्यही इसके सुविशाल गर्में अनन्त रलगारे संस्थापित हैं किन्तु रत्न कह्ानेते हीरा-छाल-पत्ना आदि मल्यवान्‌ कंकर पत्थर ही फेल रत्न मान लियेजोय सो वात यहां नहीं है । ऐसे पत्थर रसन तो अन्यत्र भी उपलब्ध होसकते हैं परन्तु भारतभृूमिके पविष्रि गरम “ नवरत्न, नररल, नारीस्ल, विद्यारल, वस्तुरल और ग्रन्य ग्लाडदि ' अमूल्य और बहुमूल्य विविध रतन वह भेरेष्गए हैं, जिनकी अन्यत्र उपलब्धि असाध्प ही नहीं, अतम्पव भी है यहांके किसीएक रलकों उठाकर अवोकन कीजिये-एक एफ रत्न अनेफानेक सद्ूगुण प्रतीत होते हैं । यदि भारतीय रलराशिका प्रदर्शन करायाजाप तो उसके ढिये बड़ेभारी आयोजनकी आवश्यकता है। इस छुद्काप भूमिकास्थल्मे प्रदर्शिनी तो क्या, रत्ननाम संग्रह करनेका भी सुप्रधन्ध नहीं दो सकता है । और सब छोड़कर यदि अन्यान्य रलेंके अतिरिक्त यहों फेबल ग्रन्यरत्नोफ। ही प्रदर्शन फराना चाहें तो उसके लिये भीं आज्न भावशपक सम्रय, साम्रप्री और स्व नहीं है और न उनकी सूचीमात्र ही यहाँ देसक) हैं । इस फामके लिये मद्रचित ४ भारतमें रत्न ” नामक पुस्तक आवश्यक है । किन्तु ग्रन्यस्लॉमसे नगनेका जो एक रत्त आज हमोरे हाथमें है, फेवड उसीका यहाँ कुछ परिचय देना उचित, आवश्यक और छामदायक समझते हैं 1 इस ग्स्यरत्तका नाम-समरसार”है। इसको श्रीरामचन्द् सोम* याजीने स्वस्शाखोंक सार छेकर ८५ पचाशों छोकोमें संग्रह किया ६। इसमें छोटे छोदे सौर उपयोगी केवठ दश प्रकरण वर्णन किये




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