एकै साधे सब सधें | Ek Sadhe Sab Sadhey
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ऋनाग्रह : सर्व धर्म सद्भाव की पहली शर्ते
धस्पो मंगलमुविकट्ठ
--धर्म उत्कृष्ट मगल है ।
धघमं मानव जीवन को तेजस्वी बनाता है।
धर्म एक अत्यन्त ही व्यापक विधान है. ।
धर्म वस्तु या व्यक्ति मे सदा स्थिर रहने वाली वृत्ति है। इन अर्थों मे वह
प्रकृति है, स्वभाव है। धर्म भाज रढ हो गया है। इस अर्थ मे कि वह आचार्य,
ऋषि, देव या अरिहत द्वारा निर्दिष्ट कम है जिसके अन्तर्गत आत्म-मुक्ति या
पारलौकिक सुख की उपलब्धि होती है। धर्म एक दायित्व है। जैसे ब्राह्मण-धर्म,
गृहस्थ-धर्ं, श्रमण-धर्म आदि । धर्म का उद्देश्य प्रवृत्ति का शोधन है । यह निवृत्ति
की सीमा को विस्तारता चलता है। इन अर्थो में धर्म सत्कर्म है, सदाचार है।
उचित-अनुचित का परीक्षण करने वाली चित्त-वृत्ति धर्म है
धर्म मे समय के साथ व्यापक रूढता आई है । इसके कई उप संगठन हुए,
जो सम्प्रदाय कहलाए | यूँ कहूँ कि सकुचिता की गहरी पैठ हो चली है। चित्त की
सकीर्णता से ही ये भेद उभरे । भेद से ही चुनौती, वैमतस्य और विक्ृतियाँ उभरी ।
वथाकधित धामभिक अच्धक्रियाएँ या विवेकशुन्य निष्ठाभाव मे वास्तविक धर्म की
अहंताएं नही है। ये क्रियाएँ विद्वप को उभारने लगी। फलस्वरूप मानव कई
विडवनाओ से घिर गया । जीवन दूभर हो गया, धर्म के प्रति आस्थाएँ डिग्रने
लगी । यही नही धर्म को अफीम तक कहा गया, उसे ढकोसला माना जाने लगा ।
सर्व धर्म समन्वय की आवश्यकता महसूस होने पर धर्म के वास्तविक
स्वरूप की ओर आक्ृष्ट होने का उपक्रम हुआ। धर्में के उद्देश्यों के प्रति रुझान
होने लगी किन्तु अभी तक यह रुझान समपंण की समृद्धता के दायरे नही छू
पाई है। अभी भी उसमे तमाशवीन सा केवल जिज्ञासाभाव है । उसे अपनाने
व अपने से समाहित करने की भावना का उदय नही हुआ है ।
अनाग्रह : सर्व धर्म सद्भाव की पहली शर्ते &
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