स्याद्वादसिद्धि | Syadvadsidhi

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Syadvadsidhi by दरबारी लाल शास्त्री - Darbari Lal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादनके विपयमें श्र २, हिन्दी-सारांश भी साथमें दे दिया है जिससे हिन्दी- भापाभापी भी ग्रन्थके विषयों एवं तद्गत हादको समझ सकेंगे | विपयसूची भी साथमें निबद्ध है। उससे भी उन्हें लाभ पहुंचेगा। ३. अन्तमें दो परिशिष्ट भी लगाये गये हैं जिनमें एक स्या- हाद्सिद्धिकी कारिकाओंके अनुक्रमका है ओर दूसरा अन्थगत व्यक्ति-सिद्धान्त-सम्प्रदायादि बोधक विशेष नामोंकी सूचीका है। ४. वत्तीस प्रष्ठकी विस्तृत श्रस्तावना है जिसमें प्रन्थ और प्रन्थकारके सम्बन्धमें विस्तारसे प्रकाश डाला गया है। ४, दशनशास्त्रोंके विशिष्ट अध्येता, सम्पादक, लेखक एवं समाजके ख्यातिग्राप्त विद्वान माननीय पं० महेन्द्रकुमारजी न्‍्याया- चायका चिन्तनपूर्णो प्राक््थल भी निवद्ध है जिसमें उन्होंने जैन- दशनके श्रमुख सिद्धान्त एवं अस्तुत प्रन्थके प्रतिपाद्य विषय स्याह्माद पर सुन्दर प्रकाश डाला हे । कृतज्ञता-प्रकाशन इस ग्रन्थके कार्यमें हमें अनेक सह्ृद्य महानुभावोंने भिन्न- भिन्न रूपमें सहायता पहुंचाई है उसके लिये हम उनके अत्यन्त कुतज्ञ हैं। माननीय मुख्तारसाहब और प्रेमीजीने इसके सम्पा- दनादिके लिये उत्साहित किया तथा अपना अजुभवपूर्ण परा- मशें दिया। सम्माननीय पं० महेन्द्रकुमारजी न्‍्यायाचायेने मेरे अनुरोधको स्वीकार करके अपना चिन्तनपूर्णो आक्ृथन लिखनेकी कृपा की ओर मिलानके लिये काशी पहुंचने पर इस कार्यकी सरा- हना करते हुए प्रोत्साइन दिया । श्रीमान्‌ पं० के० भुजबलि जी शास्त्री मूडबिद्रीने हस्त-लिखित तथा वाडपन्नीय श्रतियाँ भेजकर मुझे अल॒ग्रहीत किया | प्रिय मित्र प॑० अश्नृतलालजी जैनदर्शनाचाय ओर पं० देवरमभट्टजी स्यायाचायने मिलान कायमसें




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