श्रीमद् वाल्मीकि रामायणम् [ युद्धकाण्ड-उत्तरार्द्ध ] | Shrimad Valmiki Ramayanam [Yuddhakanda-Uttararddha]

Shrimad Valmiki Ramayanam [Yuddhakanda-Uttararddha] by महर्षि वाल्मीकि - Maharshi Valmiki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) अप्त होना | लद्मण जी ग्रोर श्रतिकाय का युद्ध । लक्ष्मण जी की मार से श्रतिकाय के करें हुए सिर का भृति पर गिरता | बहत्तत्ाँ सगे ७७३-७७७ अतिकाय का मारा जाना सुन, रावण फा उद्धिन्न हाना। लड्ढा की रक्ता के लिये विशेष प्रत्नन्ध करने की रावग द्वारा आज्षा | तिहत्तरवाँ समे ७७८-७९७ पुत्रों शोर भाइयों के, युद्ध में मारे ज्ञाने पर, शेक- विहत रावण के, शपने पराक्रम का बखान ऋर, इन्द्रजीत का धीरज वँघाना | सेना सहित इन्दज्ञीत का युद्ध के लिये निझलना । राक्षमों ग्रोर घानरों का घेर युद्ध । समस्त वानस्यृध्पतियों के इन्द्रतीत द्वारा घायल देख ओर लक्ष्मण सहित अपने ऊपर उमके बाण्वृष्टि करने देख, श्रीरामचन्द्र जी की लद्टमग ज्ञो से वातचीत। इन्द्रज्ीत का लड्ढा में प्रवेश । चौहत्तरवाँ सगे ह ७९७-८ १९ विभीषण द्वारा वानरों के। सान्वना-प्रदान । हाथ में मणशाल ले हसुम्ान और विसीषण का रणत्षेत्र में घूम घूम कर जोचित चानरों के प्राश्वासन-प्रदान । घ्रायल ज्ञाम्- चान से विभीषण की भेंट । जास्ववान का विभो पण से हनुमान जी का कुशल-प्रश्ष। इस प्रश्न से विभी पण का विस्मित होना और जाम्वान द्वारा विभोएश का सप्ता- घान किया जञावा | ओपदधि-पर्वंत लाने के लिये जञासवान का हनुमान जो के आदेश | हनुमान जी क्वा गमन और




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