पाठ्य रत्न कोश | Pathya Ratna kosh

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Pathya Ratna kosh  by फतह सिंह - Fatah Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रास्ताविक परिचय महाराणा कुम्भकर्ण कृत सद्भीतराज के प्रथम रत्तकोष श्र्थात्‌ पाठ्यरत्न- कोष के श्रब तक दो संस्करण निकल चुके हैं। प्रथम संस्करण, 'गज़ा श्रोरियण्टल सिरीज' बीकानेर के ग्रन्थाडू: ४ के रूप में, सनू १६४६ ई० में प्रकाशित हुआ था। इसके सम्पादक कीतिशेष डॉ० सी, कुन्हन राजा थे । यह संस्करण श्रनूप॑-संस्क्ृत- पुस्तकालय, बीकानेर में उपलब्ध संगीतराज की १९ प्रतियों में से दो प्रतियों के श्राधार पर तैयार किया गया था, जिनमें पाठ्यरत्नकोष का पूरा पाठ प्राप्त हो सका । विद्वान्‌ सम्पादक ने अपनी प्रस्तावना में स्पष्ट स्वीकार किया है कि यद्यपि ग्रन्थ का प्रकाशन मेवाड़पति महाराणा कुम्भकंण की.रचना के रूप में . हुआ है, परन्तु इसमें कहों भो उनका नाम नहीं झ्राता है; यही नहीं, कृति के कर्ता का 'कालसेन” नाम से उल्लेख है और ग्रन्थ में कत्‌-प्रशंसा के रूप में जो वंशावली दी गई है वह भी कुम्भकर्ण को प्रंसिद्ध वंशावली से सर्वथा भिन्न है। ...ग्रन्ध के वस्तु-भाग और पुष्पिकाशोों में भी जो विवरण दिए-गए हैं वे भी कुम्भ- . - कर्ण के ज्ञात विवरणों से मेल नहीं खाते । परन्तु, ऐसी बहुत सी ,हस्तलिखित प्रतियां (पाठ्यरेत्वकोष की नहीं) मौजुद हैं जिनके मूलपाठ में कुम्भा का चाम है झौर कालसेन का बिलकुल नहीं है । इनकी पुष्पिकाश्नों में भो उन्हीं तथ्यों का उल्लेख है जो महाराणा कुम्भकर्ण के विषय में विश्वुत हैं। परन्तु, ऐसी सभी पाण्डुलिपियां श्रपूर्ण एवं खण्डित हैं; ऐसी एक भी प्रति नहीं है जिसमें ग्रन्थ का ग्रादिभाग उपलंब्ध हो । यदि कोई ऐसी प्रति मिल जाय जिसमें ग्रन्थ का श्राद्य भाग प्राप्त हो और जिसमें ग्रन्थकर्ता का नाम कुम्भा-दिया गया हो तो निस्सन्देह, उसके पद्यों में महाराणा के पूर्वजों के नाम भी यथावत्‌ मिल जावेंगे। श्रनूप-संस्क्ृत-पुस्तकालय, बीकानेर में संगीतराज की एक ही सम्पूर्ण भ्तति हूँ, जिसका लिपि.संबत्‌ १४२४ शाके (१५०२ ई०) है ओर लिपिकार रामेश्वर- सुत म्हालसा भट्ट है। यह प्रति कामग्रिरि स्थान में राजा कालसेच की नाट्यशाला- स्थित नतेकियों के पठनाथ्थे लिखी गई थी । शेष सभी प्रतियां, जिनमें कुम्मकर्ण- कृत पाठ वाली प्रतियां भी शामिल हैं, श्रपूर्ण एवं चुटित हैं दूसरा संस्करण “हिन्दू विश्वविद्यालय नेपाल राज्य संस्कृत ग्रत्थमाला! के के श्रन्तर्गत सन्‌ १६६३ ई० में निकला है.। इसका सम्पादत डॉ० कुमारी प्रेम- नी




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