लोकायतन | Lockayatan

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Lockayatan by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ उदय हृदय में हुए राम पुस्षोत्तम, दो मीहमंधथि पर्व से दुगु मोहन बोसे पिजलित सी छगती तुम सीते भसो बीती को गत बूत्त समापन ! मृत संस्कारों का उपचेदतन पघू भत्त घिर प्रनादि जंह चतन का संधर्षण तब प्रकाश में गहईना सुम्हें घण मु, सादी मानब मे सम्मुय भीषण रण ! बेततस ही जड़ जड़े ही चेतन जीवन बस मे पाता सृष््म त्य ताकिक मभठि मन हो बाहुर स्थिति, स्थिति ही भीतर मन छहास विकासमपी गुम की गति परिमति ! राज्य सख्त का सूर्य क्षिद्वि> में प्रोम्त राम शाम्य था कृषि मत़ का थुय पर्पेच् गत पुय के जीबशर सम के संबय को अराद्धाति तो. करहा तुम्हें समर्पण ! देखोणी हुम सोगस॑ंत स्वर्ञोदय मामणथ जौदन मूत््यों का भब जितरण मए कल्प की प्रसव व्यंथपा पुष्दी की छिड़ां तलिछिण जग में बाहर भीतर रण! रहा मनोमप पुस्य रूप बहू मेरा कृषि युग की मर्पारा से निर्षारित छेत शषाई था. कुरुम्थ बा जीगम जिसशी जड़ स्ौपा पर था प्रापधारित ! परम भीठः सलति जिचार विधि दर्शन विदिए शासत बहू यम नियम ग्रठ साधन शामत पदति भर्तुरडर्ण अतुरापम भ्रपित तुपरों बता यु बर्म विभाजत ! हँसी जानरी--शप तत्व शाता दुु इतीजत भुएणो यह सर्रश्य समर्पश लाब हुप पुद्र री घतीत स्थित सुख इनो चुन., प्रिधष हा वश्य के हर!




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