अथ श्यामा रहस्य तंत्र | Shyama Rahasya Tantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ श्यामारहस्य भा० टी० ) कुलचूडामणिश्वत्र कुमारीतंत्रमेवच । कुलाणेबं तथाका-* कछीकलप भेरवतन्लकम्‌ ॥ कालिकाकुलसद्धाव॑ तथा चोत्तर तनन्‍्वकप गरूणांच मतं ज्ञात्वा साधकानां तथा मतम्‌ ॥ शद्धवद्धि स्वभावाये वचक्ष्यामि मोक्षकारिणीम ॥ तदक्त स्वतनन्‍्त्र । क्रोधीश पिन्दुयुककान्ते ! त्रिसूर्त्यग्निसमायुंतम्‌ । प्रि- लिंखेत परतो देवि ! हुंकारहयमेव च। मायाहये समालि- खूय अन्निसंवत्तेसूक्ष्मसुछू ॥ नेकालिके सप्तवर्णान्‌ पूर्षषत्‌ परमेशरि | | स्वाहान्तेयं महाविय्या द्वाविशतव्यक्षरापरा ॥ अनया सदृशी विद्या नास्तिज्ञ/नेतु मामके ॥ ्‌ कमारातन्त्र॥प । भरव उद्ाच । 4 अतिगुश्चतर झेतत्‌ ज्ञानात्मक सनातनम्‌। अताव च सगो 2. तर प्यञ्व कथितुं नेव शुक्यते ॥ अतीव च प्रियासीति कथयामि कु तब प्रिये ! । रूपाणि बहुसंख्यानि प्रकृतेः सन्ति भाविनि !॥ तेषां मध्ये सहेशानि ! कालीरूप मनोहरम्‌ । बिशेषतः क- लियुगे नराणां भ्ुक्तिमुक्तिदम्‌ । तस्यास्तुपासकाश्ेव ब्रह्म विष्णुशिवादयः। चन्द्र: स॒थ्येश्व वरुणः कुबे रोडग्निस्तथापरः । कुछचूडामणि, फूपारीतंत्र, कुलाएंब, काछोकल्प, भेरवत्ेत्र, कालिकाकु लप्तद्भाव, उत्तातंत्र, एवं गूरुवणं और साधकगणोंका मत यह सब विशेष जानकर श॒द्ध वृद्धि स्वभावाय यह मोक्त जनक सहिता कीच्तेन करूंगा ॥ कुपारोतत्र में भेरवने कद्दा है कि काछी का विपय अत्यन्त गृह्मतर है । यह आतीद गुप्त रकख । किसके निकठ न कहे, तुम मरो अत्यन्त मियहो+ इसकारण तुम्हारे निकट कहता हूं॥ डे भामिनि ! प्रकाते के बहु संख्यक रूपहतिनमें हे महइ्वरि ! काछीरूपदी मनाहर है ।देशुपत+ काकछयुगम यह काछी रुपही संपूे छोफकों भक्ति घांक्ति प्रदान करताई। त्क्मा।देप्छु, और शिवादि इश्परगण आर चन्द्र. सूप, वरुण,




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