संतवाणी [ढाई हजार अनमोल बोल ] | Sant Vani [ Dhai Hajaar Anamol Bol ]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
325
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संत-वाणी २७
१८६-प्रमदासज्भसे वरावर वचना चाहिये । जो निरभिमान
होकर निःसज्भ हो गया हो, वही अखण्ड एकान्त-सेवत्त कर
सकता है ।
१७६०-सत्री, धन और प्रतिष्ठा चिरंजीव-पद-प्राप्तिके साधनमें
तीन महान् विघ्त हैं ।
१६१-सच्चा अनुताप और शुद्ध सात्त्विक वेराग्य यदि न हो
तो श्रीकृष्णपद प्राप्त करनेकी आशा करना केवल अज्ञान है।
१६२-सुनो, मेरा पागल प्रेम ऐसा है कि सुन्दर श्याम श्रीराम
ही मेरे अद्वितीय ब्रह्म हैं और कुछ मुझे नहीं मालूम । रामके विना
जो ब्रह्मज्ञान है हनुमानजी गरजकर कहते हैं कि उसकी हमें कोई
जरूरत नहीं । हमारा ब्रह्म तो राम है ।
१६३-जो मोल लेकर गंदी मदिरा पान करता है, वही उसके
नशेमें चूर होकर नाचता गाता है, तब जिसने भगवत्प्रेमकी दिव्य
मदिराका सेवन किया हो, वह कंसे चुपचाप बैठ सकता है ?
१६४-भगवान्के चरणोंमें अपरोक्ष स्थिति हो जाय तो वहाँ
क्षणाधेमें होनेवाली प्राप्तिके सामने त्रिभुवन-विभव-सम्पत्ति भी
भक्तके लिये तृणके समान है ।
१४ ५-याचना किये बिना यदृच्छासे जो कुछ मिले उसे साधक
मद्भलमय प्रभुका महाप्रसाद समझकर स्वानन्दसे भोग लगावे ।
१६६-दारा-सुत, गृह, प्राण सब भगवान्को अपँण कर देना
चाहिये। यह पूर्ण भागवत धर्म है। मुख्यतः: इसीका नाम भजन है।
१६७-साधु-संतोंसे मेत्री करो, सबसे पुराना परिचय (प्रेम)
रक््खो, सवके श्रेष्ठ सखा वनो, सबके साथ समान रहो ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...