चेतना के स्वर | Chetana Ke Swar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)23
राणा सांगा मेवाड़ के शासक थे । उस समय बहादुरशाह ने चित्तोड़ के चारों
ओर घेरा डाल दि 1। मेवाड़ बहादुर शाह का सामना करने में असमर्थ था। तंव
मेवाड़ की महारानी कर्णावतती ने दिल्ली के बादशाह हुमायू के पास राखी भेजी और
रक्षा की प्रार्थना की | तब हुमायूँ ने सोचा मेवाड़ की महारानी ने मुझे राखो भेज-
कर भाई बनाया है तो मुझे उसके देश की रक्षा करनी चाहिए ।
इसी के साथ वह उसकी रक्षा के लिए उद्यत होता है। तात्पये यह है कि
प्राचीन काल से ही रक्षा का महत्त्व अति उच्च रहा है। एक बार राखी बंधवा लेने के
पश्चात् वह अपने आपको उसके प्रति ही समपित करता था और प्राण देकर भी रक्षा
करने के कत्तव्य का पालन करता था । लेकिन आज रक्षाबन्धन का महत्त्व क्या हो
गया है ? बहनों की क्या स्थिति है ? इससे भाइयों को कोई मतलब नहीं है । जिनके
घर में कोई उपार्जन करने वाला नहीं, वे किप्त अवस्था में अपना जीवन यापत्र कर
रही हैं? इन बातों पर कभी आप विचार करते हैं ? यदि आप उनके प्रति सजग
नहीं हैं, आप उनकी सहायता नहीं करते तो आपका राखी बंधवाना व्यर्थ ही है। यह
तो रक्षा पर्व का लौकिक स्वरूप है । अब थोड़ासा आध्यात्मिक दृष्टि से भी चिंतन
कर लेते हैं। हम अनादिकाल से बंधनों से जकड़े हुए हैं । वलि रूपी शत्रु अहंकार का
आत्मा पर कब्जा है। अगर आत्मवल रूपी विष्णु प्रकट हो जायें तो हमारे भीतर के
समस्त शत्रु पराजित हो जायेंगे । आत्मरूपी वल ही हमारी सहायता करेगा तब ही
हमें सफलता मिल सकती है। तब ही हमारी आत्मा की रक्षा हो सकती है |
इस त्यौहार की सार्थकता इसी में है कि हम लगे हुए दोपों व पापों का
प्रायश्वित करके और आगे इनसे बचने के लिए सावधान हो जायें । जिस तरह
ब्राह्मण भाज के दिन रक्षा-वन्धन बांधते हैं, उसी प्रकार आपकी भी अपनी आत्मा की
रक्षा के लिए कुछ उपाय करना चाहिए ! ह
इस प्रकार रक्षा वन््धन समस्त मानव जाति की रक्षा का सन्देश देता है ।
माता-पिता, भाई-वहिन, प्राणीमात्र की रक्षा के लिए हमें हमेशा ही तत्पर रहना
चाहिए । तब ही हमारा रक्षापवें सनाना सफल होगा और आपकी आत्मा की रक्षा
भी हो जाएगी ।
9 आस्त, 1987
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