आहार चिकित्सा | Aahar Chikitsa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुरेश चतुर्वेदी - Suresh Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अवस्था में यदि भोजन किया जाय तो स्ग्रामाशय में पराचनक्रिया ठीक
प्रवार स नही होती है। यदि ६ घदे बाद बहुत समय तक भोजन न
किया जाय तो झशक्वि (कमजोरी) भाती है। जि तु इसका यह भय
नही है कि सुबह भोजन करन वे पश्चात सायकाल भूख न भी लगे तो
भी भोजन करना ग्रावश्यक है । वास्तव मे भूख लगने पर ही भोजन
करना चाहिए। पूव भोजन के पच जाने पर ही खाइय । साघारणत
सुबह शाम के भोजन मे झ्राठ घटे का अन्तर रहना चाहिए।
दिन में भोजन करना श्रेष्ठ हाता ह बयाकि दिन में समस्त भान
डिियो एवं वर्मेदद्रियो की क्ियायें होती रहने से पेट मे गया झ्राहार
दूषित नहीं होता ।
जिन व्यक्तिया को रात को भोजन करना ही पड़े, उह्े रात के
पहले सीन घटा मे भांजन वर लेना चाहिए तावि पाचन की तिमा
ठीक रहे ।
रात की दस बजे वे वाद भाजन करना सदा हानिकारक होता
है। इससे भ्रपच, क जे, मधुमेह (शुगर) भ्रादि राग हा जाते है।
ऋतु के प्रनुसार दिन छोटे व वर हाने के कारण भाजन के समय
में छुछ परिवततन क्या जा सकता है ।
विद्ामिन
विटामिन (जीवनीय)-- वाल्य तथा योवनवाल में इन द्वब्या
की आवश्यकता सविशेष होती है ।
प्रधिवाश जीवनीय उद्धिदो में बनते हैं झौर वहा से उहें जो
प्राणी लाने है उनके शरीर म श्राते हैं ।
जीवनीयो के भ्रयोग या हीनयाग से रोग होते ही ह यह कोई
नियम नही ह तथापि अनाराग्य के श्रव्ययतत लधण ग्लानि रागो की
प्रवत्ति, असम्यक पुष्टि आदि अवश्य हाते हैं।
जीवन के प्रारम्भ म इनका समयाग न हो तो जा परिणाम हाते
हैं उ'हू श्राग अधिकतम मात्रा मे जीवनीय देवर भी पूरा नही क्या
२५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...