भागवत चरित | Bhagvat charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४) ही बड़ी देर हो गयी । रानियोंकी उत्कंठा पराकाष्ठाको पहुँच चुकी स्थी, किन्तु सासोंके सम्मुख पतिके पास जानो मयादाके विरुद्ध है, अतः वे ओठमें से छिपफर अपने हृदयधनके दशन करनेकी आअ6फल चेष्ठायें करने लगीं। खिइकी ऊँची थी। उचकनेसे परोकि कड़े छुड़े कोकृत हो उठे। चूड़ियाँ बजने लगीं। इस खनखनाइट आर झसनममाध्ट्से माँ देवकीका ध्यान उधर गया। वे भी नारी थीं। नारी हृदयकी पीर समझती थीं। द्ुरन्त उठ कर खड़ी हो गयीं और पुचकारती हुईं बोलीं--“भ्रच्छा, बेठा ! फिर बाते होंगीं, तू आ्यका होगा | जा भीतर कपड़े बदल ले ।” भीतर जाकर कपड़े बदलने का अर्थ क्या है इसे श्यामसुन्दर समझ गये और मुसकराते हुए घर चले अब देखिये सहलके भीतर भी भारतीय सभ्यताका कितना ध्यान स्खा गया है। भारतीय सभ्यतामें कितीके भी सम्मुख पत्नी अपने यतिका स्पश नहीं कर सकती। किन्तु इतने दिनोंके पश्चात्‌ पति आये हैं उनका आलिंगन करना अत्यावश्यक है| अत) उन्होंने अपने छोटे बच्चोंको पतिकी 'गोदमें दे ,दिया। पतिने उनका मुख चूमा प्यार किया दह्ृदयसे लगाया। फिर पत्नीको दे दिया। अब पत्नीने उसका मुख चूमा छातीसे लगाया। मानों पतिका ही श्रालिगन सिल गया | आलिंगन तो पतिक्रा क्रिया, किन्तु पुत्रकों बीचमें डाल “कर--मर्यादाके भीतर | कविके शब्दोंमें इसी भावकों पढ़िये--- सुनि नूपुरकी कनक चुरिनिकी खनक मनोहर | माँ बोलीं-'अब जाउ बख्र बदलो भीतर घर | सनन्‍्द सन्द सुसकात सहलमें मोहन आये । नारि निरखि नंदनंद नयनते नीर बहाये | सनते मोहनतें मिलीं, नयत्न ओटतें चोट करि। शिशु सॉंप्यो पुनि लाइ उर, आलिंगन यों किये हरि ॥ ओऔराम चरित मर्यादा चरित है और .भरीकृष्ण लीला माघुरी रस सय-चरित्र है। नो अध्यायोंमें इसमें राम चरित्रका भी वर्णन है उसमें




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