सभाष्यतत्वार्थाधिगम सूत्र | Sbhasyaattwarthdhigam Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री रामचंद्र जैन - Shri Ramchandra Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बढ
(हि थ
हु $ 3# | “बल कट |
६32 ५ हु |) 1.
हर
ड ढि १
५ हर
हक हि
द् ला
> इनक छ्ड़
रायचन्द्रजेनशाखमालों'
श्रीमत--उमास्वातिविरचितं
समाष्यतत्त्वार्थाधिगससूत्रम ।
हिंदीसाषानुवादसहितम:
न-+-+ल्छ 954०० 2.
सस््बन्धकारिका;
सम्यग्दशेनशुद्धं यो ज्ञान विरतिमेव चामोति |
दुशखनिमित्तमपीद तेन छुलब्घे भवत्ति जन्म ॥ १ ॥
जन्मनि कमेछेशेरलुबद्धेडस्मिस्तथा भयतितव्यम् ।
कमछेशाभावों यथा भवस्येष परमाथे; 1 २ ॥
परमाथौलामे वा दोषेप्वारम्भकखमभावेषु ।
कुशलालुवन्धमेव स्थादनवर्य यथा कमे ॥ ३ ॥।
कमोहितमिह चाम्तत्र चाधमतमोी नर समारभते ।
इृह फलमेव खधमो विभध्यमस्तूमयफलार्थम् ॥ ४ ॥
परकोकहितायैव अवतेते मध्यम$ क्रियासु सदा |
मोक्षायेव तु घव्ते विशिष्टमतिरुत्तमः पुरुष: ॥ ५१॥।
यस्तु ऊतार्थों उप्युत्तममवाप्य धर्म परेभ्य उपदिशति ।
नित्य स उत्तमेम्यो5प्युत्तम इति पूज्यतम एवं ॥ 5 ||
तस्मादईति पूजामहेल्रेवोच्मोत्तमोी लोक़े ।
देवर्पिनरेन्द्रेभ्यः पूज्येम्योडप्यन्यसत्त्वानाम् 1 ७ 1!
अभश्यचेनादहेतां मन+प्रसादस्तत+ समाधिञ्र ।
तस्मादपि निःश्रेयसमतो हि तत्पूजन न्याय्यस् ॥ ८11
User Reviews
No Reviews | Add Yours...