महादेवी संस्मरण ग्रन्थ | Mahadevi Ismaran Granth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahadevi Ismaran Granth by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

Add Infomation AboutSri Sumitranandan Pant

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
बह सा गया है।' हटवाई ने वालस्य मुग्य हाकर पृछा--|जसा है तुम्हारा रामा ? इन्हाने ।ठ दवा वर सताप वे साथ वहा--वबिटुस अच्छा है! 1 हलवाई इस उत्तर से वया समयता ? आतत उसने जाग्रह के साथ विश्वाम करने वे लिये वही विठा लिया। “मैं हार ता मानना नहीं चाहती थी, परन्तु पाँव थव चुवें थे और मिठाइया से सजे थाला म॑ कुछ कम निमत्रण नहीं था । हमी से दुकान वे एक वाने मं विछे टाट पर सम्माय्य अतिथि वी मुद्रा में वैठबर मैं बूढ़े से मिठाई रूपी जध्य वा स्वीकार बरने हुये उस अपनी महान यात्रा वी कया सुनाने लगी 7! संध्या समय जर सयसे पृष्ठन-्यूछत वडी कठिनाई से रामा उस दूवान वे सामने पहुँचा तव इहाने विजय-वद से फूत्वर कहा--तुम इतने बडे हावर भी सा जाते हो रामा ए एक वार जब आप केवल सात वष की थी, पडास में विसी आवारा बुत्तो ने बच्चे दिपे $ जादे वी रात वा सतावा जौर ठटठी हवा दे सनत-सन झोंबा वे साथ पिल्टा नी कू वा वी घवनि बफ्णा वा ऐसा सवार वरने एगी जा महादेवी जी वे वोमए हूदय वे लिये अमहंय हो उठी | बेचनी घो साथ आपने वह्ा--वडा जोड़ा है पिस्ले ऊडा रहे हैं। मैं उनवा उठा एशाती है, सवेरे वहा रखे दुगी । चटा, चला, मरो अच्छी जिज्जी । अम्वीगृति की सूचना पात ही आप जार जार से राने छी। सारा घर जग गण और अत म॑ पिल्ल' धर उताये गये ! उनवे इस स्वमाव मं आज भी बाइ परिवतन नहा हुआ। एसे अतिथि जीव-जतुजा स उनवा घर प्रव नो प्राय भरा रहता है। इस वरुणाजनित स्वेमाव के वारण जीवन और जगत की विस वर्ण स्थिति में उनके हृदय वा स्पटन खदृत नहा ? सामने आई हुई दिस रखता को व अपनी सहज स्निग्पता से सरस नहा बर दना चाहती ?े एस! बह सी पापाणों वठारता है जा उनकी मछाघार क्रणा बे स्पर्ण से बाप नटा उठती ? सत्य बार भमूह वी रखा के लिये विद्वाह की विस ज्वाला वा उहाने अपनी त्यागम्यो तपरया वी जाँच नहीं दी यह बता सवता बढद्विन है। उमा अवस्था में पुजा-आरती व समय माँ से सुते हये मीरा, तुरुसी आदि मे तथा उनवे स्वरचित पदा वे सगात पर मुग्प हावर दाने पद रचना प्रारम्भ बर दी थी । बाव्य की प्रथम शिशु रचना का प्रारस्न खात वष वी अवस्था में इस प्रवार हुआ था-- आओ प्यारें तार आओ, मेरे जाँयन से बिछ जाआ | विःतु इसके बाद को रिसी पूध रचना समस्पापृति हो है -- आागम है टिन नायक का, अरनाद भरी नम की गल्यात मं सौदा सुम” बतास बटी, मुस्शान नंद बयरी बल्यान मर, मंग घुनी विरदावरियां अब गज़ित हैं सग औौ सवियान भ, योरन ब हित जजन्वटा सुरठाहर जोरि ग्ही जेसियान म। प्रयाग परने आन मे रहने से हो आप सरस्वती पत्रिया से परिचित हा चुत भहारे पी सरमरच-प्रप श्३े




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now