हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन | Harshacharita Ek Samskrutika Adhyayana

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Harshacharita Ek Samskrutika Adhyayana by वासुदेवशरण अग्रवाल - Vasudevasharan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वक्तव्य सलेषे क्रेचन शब्दगुम्फत्रिकये केचिद्रसे चापरे- उ्नड्स्‍रे कतिचित्सद्थविप्ये, बान्ये कथावशाके। आाः. सर्वत्र गरमीरधीरकविताबिन्ध्याटवीचातुरी- सब्चारी कविकुम्पिक्ुम्ममिदुरों बराणस्‍्तु पत्चाननः ॥ बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद्‌ को दो-तीन वर्ष में ही जो थोड़ी-धनी सफलता मिल्ली है, वह इस बात का सिद्ध प्रमाण है कि साहित्य के निपित्त सरकारी संरक्षण प्राप्त होने पर, हिन्दी में ममनशील मनस्वी विद्वान, हिन्दी-साहित्य के अभावों की पूर्ति के लिए, कितनी- ज्गन और आस्था के साथ काम कर सकते हैं। बिहार-राज्य के शिक्षा-विभाग की छुत्रच्छाया में अपनी पूरी आंतरिक स्वतंत्रता के साथ काम करते हुए परिषद्‌ ने यह अनुभव किया है कि हिन्दी के विशेषज्ञ और अ्रधिकारी विद्वानों को यदि सुअ्रवसर दिया जाय और उन्हें हिन्दी-संसार के सर्वाबदित प्रकाशकीय व्यवहारों का अ्रनुभव न होने दिया जाय, तो साहित्य में ऐसे ग्रंथों की संख्या-बृद्धि हो सकती है, जिनसे राष्ट्रभाषा का गौरव अक्षुण्ण रहे । परिषद्‌ ने ग्रंथ अथवा भाषण के चुनाव में अंथकार शभ्रथवा वक्ता को इच्छा को ही बराबर प्रधानता दी है। विद्वानों ने परिषद्‌ के उद्देश्यों को समभक्तर, अपनी स्वतंत्र रुचि और प्रवृत्ति के अनुसार, परिषद्‌ को अपने झाधुनिकतम श्रनुशीलन और अनुसंधान का फल्ञ प्रदान करना चाहा है श्र परिपद्‌ ने निःसंक्रोच उसका स्वागत और सदुपयोग किया है। यही कारण है कि परिपद्‌ को साहित्य के उन्नयन में द्विन्दी-जगत्‌ के सभी चोटी के विद्वानों का हार्दिक सहयोग क्रमशः प्राप्त होता जा रहा है । परिषद्‌ की ओर से प्रतिवर्ष दो तीन विशिष्ट विद्वानों की भाषणमात्रा का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक भाषण एक सहस्त मुद्रा से सादर पुरस्कत होता है। भाषण के पंत आन ह तक 135 ८ तन के कक 2 5यक पंत कमेंट नर ककरनरप के कम आफ व्यक्त लो: पै। दीप सका अुनपनागक अं >वकक पिन.




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