हिन्दी - काव्य में नवरस | Hindi Kavya Men Navaras
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
482
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रह
रस की परिमाषा
आत्मा के निदिष्ट भागे तक पहुँचे हुए विकास की स्थिति चत-
लानेचाले हमारे डिये हुए नाम ह--धास्तव में दो्ना ह एकही ।
इस प्रफार क्या खुख, क्या दुप--फक्या करुणा, जया कोथध
सभी घिकरार ज्ञा मतुष्य पर सुग्पफारी प्रभाव डाल, आनन्द में
ही परिगणित किये जा्यगे | यथा कोई दुक्ली मद॒ुप्य अपन
दुसे की कहाती कट-फ्हकर घलाप, गोदन इत्यादि करणो-
त्पाठक कार्य्य उर रहा हो तो उनको श्रयणफर हमारे मत से
जो पिफार 3सन्पन्न होगा उसका समावेश भी आनन्द होसें
किया जाधेगा । स्यथाकि जिस प्रकार खुसी पुरुष के खुस में सुखी
होना आनल्द है, उसी प्रफार दुखिया केदुख्र से ठुखी होना
भी आनन्द हा है | इसी प्रकार यह भी सिद्ध किया जा समझता
है फि जो विकार महुप्य फे मस्तिप्क में श्टगार, हाम्प ओर
चीरत्व के प्रभाव डालने हू उनकी गणना भी आनन्द ही में ह।
(व) लोकेत्तर आनन्द
ऊपर जिस आनन्द फा पर्णन हुआ, वह केवल व्यक्तिगत
आनन्द से सम्पन्ध रखता हे | अर्थात्, यदि किसो से करे विः
आज तुम्हारे पुन्न उन्पन्न हुआ है तो उससे केचल उसी महुप्य
को आनन्द होगा, आर्गो को नहीं। इसी प्रकार के आनन्द जो
व्यक्तिगत आनन्द फदते हैं। इसी तरह यदि फिसली आदमी से
कहँँ कि तेगे असुझ प्रेमी की मृत्यु हो गई है, तो उससे क्चल
उसी मनुष्य को शोक होगा ज्ञिसका पह्द प्रेमी था, अन्य वो
नहीं। परन्तु मानय जाति का यह ध्राउतिक स्वभाय हे हि चद
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