जंबूसामिचरिउ | Jambusamichariu

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Jambusamichariu by डॉ॰ विमलप्रकाश जैन - Dr. Vimalprakash Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गलत टट कल 2 कट िड कक गतीली मर लक पालन टी गयी गजल ही ट गीत ति तक नमन नल घट शरीगट डी ट तन गटर तट पीट की ल्० पृण्यश्लोका माता मूर्तिदेवीकी पवित्र स्म॒ृतिमें तत्मुपुत्न साहू शान्तिग्रसादजी-द्वारा संस्थापित भारतीय ज्ञानपीठ मू्तिदेवी जेन ग्रन्थमाला हस ग्रन्थमालाके अन्तर्गत प्राकृत, संस्कृत, अपअरंश, दिन्दी, कन्नढ, तमिल झादि प्राचीन मापषाकेंमिं उपरूब्ध आगम्रिक, दाशंनिक, पौराणिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक आदि विविध-विषयक मचाशिफस अनुसन्धानपूर्ण सस्पादून तथा उसका मूछ और यथासम्सव : अनुवाद आदिके साथ प्रकाशन हो रहा है । जैन मण्दारोंकी सूचियाँ, शिलालेख-संग्रह, विशिष्ट विद्वानोंके अध्ययन- अन्य और छोकहितकारी जैन-साहित्य अन्य भी इसी अन्थमालामें प्रकाशित हो रहे हैं । ... पग्रन्यमाला सम्पादक डॉ० हीराछाल जैन, एम० ए०, डी० लिद० डॉ० आ० ने० उपाध्ये, एम० ए०, डी० लिट्‌० अकाशक भारतीय ज्ञानपीठ प्रधान कार्यात्थ : ९ अछीपुर पार्क प्लेस, कछकत्ता-२७ प्रकाशन कार्यारषय : दुर्गाकुण्ड मार्ग, चाराणसी-७ विक्रय केन्द्र : ३६२०२ नेताजी सुभाष भागे, दिल्ली-६ मुद्रक : सन्मति मुद्रणाल॒य, दुर्गाकुण्ड मार्ग, वाराणसी-५ ५ 1 ७ है. 8. डे (० ०९५/९५३९५.३७-२५-२१५/०५/४५७-४१५०१७०५००७/७/+९०१५०५३/४०६/३००_कलननतरिकमक. स्पापना : फास्गुन कृष्ण ९, वीर नि० २९७० ७ विक्रम स० २००० ७ ३८ फरवरी सन्‌ १९४४ सर्वाधिकार सुरक्षित




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