योगसार | Yogasar

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Yogasar by आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय - Aadinath Neminath Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राश्ताविक निवेदन जोइन्दु या योगीन्दु उच्चश्रेणीके आध्यात्मिक गूढ़वादी हैं | इन्होंने जैन-अध्यात्मबादके ऊपर अपभ्रेश भाषामें दो ग्रंथ लिखे हैं | इनमें परमात्मप्रकाशसे तो जैनसमाज काफी परिचित है। दूसरा ग्रंथ योगसार है। यह मूछ और संस्कृतछायासीहत माणिकचन्द जैन- ग्रंथमाछामें (प्रंथ नं० २१) सन्‌ १९२२ में प्रकाशित हुआ था। परन्तु उसका मूछ पाठ और छाया जितनी चाहिये उतनी छुद्ध नहीं छपी थी। सन्‌ १८९९ ई० भें ख़० मुन्शी नाथूराम ठ्मेचूने इस ग्रंथके दोहोंका हिन्दीपधानुवाद करके हिन्दी अनुवादसह्तित प्रकाशित किया था, और उसे स्वानुभवदर्पणके नामसे प्रसिद्ध किया था। तत्पश्चात्‌ सन्‌ १९०६ ई० में यही स्वानुभवदर्पण माणिकलाल घेहेलाभाईके गुजराती अनुताद और पं० फतेहचन्द कपूरचन्द छालनके विवेचनसहित बम्बईसे प्रकाशित हुआ था | अत्र यह योगसारका मूल अधघोलिलित चार हस्तलिखित प्रतियोंके आवारसे तैय्यार किया गया है--- अ--यह प्रति जैनसिद्धांतवन आराकी है, जो पं० के० भुजबली शाद्नैके अनुग्रहसे प्राप्त हुहं। यह देवनागरी ग्रति दिल्ली मंडारेकी प्रतिके आधारसे संवत्‌ १९९२ में लिखी गईं है । इसमें मूठ और गुजराती शब्दार्थ ( ठब्बा ) भी दिये हैं । प--पाटन संडारकी यह हस्तलिखित ग्रति श्रीपुण्पविजयजी महाराजके अनुम्रहसे प्राप्त 'हुईं। “अ? प्रतिकी अपेक्षा यह प्रति अच्छी है । इसमें भी गुजराती ठब्बा है। यह प्रति संचत्‌ १७१२ की लिखी हुई है । ब--यह प्रति पं० नाथूरामजी प्रेमौके अनुग्रहसे ग्रात्त हुई | यह देवनागरी प्रति बहुत प्राचीन है, इसाडिये इसके पृष्ठ न्ुठित हो गये हैं | चारों हस्तलिखितं प्रतियोंमें यह प्रति प्राचीन, स्वतंत्र और झुद्ध है । झ--यह प्रति पं० पन्नाछाछजी सोनीके अनुग्रहसे श्रीएछठक पतन्नाछार दि० जैन- सरस्वती भवन झालरापाटनसे प्राप्त हुई है । यह आधुनिक है, और इसमें छेखकके प्रमादसे बहुत-से दोष रह गये हैं [| इन चारों प्रतियोंमें * अ.!, “ प्‌ *, और “झ्लृ? प्रतिमं बहुत कुछ साम्य है, और ४ व ? प्रति ख़तंत्र जान पड़ती है| भ्रस्तुत संस्करणमें मूलक्के साथ दी हुई संस्क्ृतछायामें संधि नहीं की गई--छाया शब्दशः ही रक्‍खी गई है । इससे पाठकोंको छाम होगा | इसका हिन्दी अनुवाद हमारे मित्र प॑ं० जगदीशचन्द्रजी शात्री एम० ए० ने किया है। उक्त ग्रतियोंकि प्रेषक सजनोंका तथा अनुवादक महाशयका हम बहुत आभार मानते हैं। राजाराम कालेज, कोल्हापुर. आपाढ़ शझु ० ८ ० आ, ने, उपाध्ये स० १९९३.




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