भेड़िया धसान | Bhediya Dhashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विरिचि-बावा
परमार्थ--“तो फिर दमदम चलिये, गुरुदास वाबूफे बयीचेमे,--
विरसिचि-बाबाके पास 1”?
निवारण--“फोन, अलीयुर-फोटके वकील गुरुदास वाबू १ हमारे
प्रोफेसर नवनीके ससुर? उन्हें बावाजी कहांसे मिल हये«८
सत्यत्रत, तुम भी कुछ खबर रखते हो, या ऐसे ही ९”
सत्यनव--“नयत्रीके मुह सुना तो है, किसी शुरू-उहके
खकरमे आ गये हैं। सत्रीके मरनेके बादसे वेचारेका मन बिलकुल ही
बदछ गया है । पहले तो किसीको भी नहीं मानते थे ।”
निवारण--“गुरुदास वाउके एक कुँआरी लडकी है न ९?
सत्यप्रत--“है न ।--बुँचकी, नवनी-भश्याकी साली ।”
निवारण--/६व, परमार्थ, वाबाजीकी तारीफ तो सुनाओ, कैसे है ९”
परमार्थ--“भ'ई, तअज्जुब होता है । फोई कद्दता है उनकी उमर
पाँच सो बरसऊकी है, कोई कहता है पाँच हज़ार घरस । पर देखनेमे
निताई बाबू जैसे छूगते हे। बाबाजीसे फोई पूछता है तो वे ज़रा
ईसकर जवाब देते हैँ--/उमर नामकी ससारमे कोई वस्तु ही नहीं दै।
फाल/--सब्र एफ ही काल है, स्थान,-सपय एफ ही स्थान है। जो
सिद्ध है, वे त्रिकाछ ओर त्रिछोफका एक ही साथ भोग फरते हैं? झीसे
मान छो,--अभी सेप्तेम्बर १६२४ है; तुम हवसी-वगानमें रहते हो।
विरिचि-बाना चाहें तो अभी तुम्हें अकवरफे टाइममे आगरा, था, फोर्थ
सेल्चुरी वी० सी० में (ईस्थी सनसे ४०० वर्ष पहले) पाटलीपुत्र
श
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