भेड़िया धसान | Bhediya Dhashan

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Bhediya Dhashan by रामचन्द्र टंडन - Ramachandra Tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विरिचि-बावा परमार्थ--“तो फिर दमदम चलिये, गुरुदास वाबूफे बयीचेमे,-- विरसिचि-बाबाके पास 1”? निवारण--“फोन, अलीयुर-फोटके वकील गुरुदास वाबू १ हमारे प्रोफेसर नवनीके ससुर? उन्हें बावाजी कहांसे मिल हये«८ सत्यत्रत, तुम भी कुछ खबर रखते हो, या ऐसे ही ९” सत्यनव--“नयत्रीके मुह सुना तो है, किसी शुरू-उहके खकरमे आ गये हैं। सत्रीके मरनेके बादसे वेचारेका मन बिलकुल ही बदछ गया है । पहले तो किसीको भी नहीं मानते थे ।” निवारण--“गुरुदास वाउके एक कुँआरी लडकी है न ९? सत्यप्रत--“है न ।--बुँचकी, नवनी-भश्याकी साली ।” निवारण--/६व, परमार्थ, वाबाजीकी तारीफ तो सुनाओ, कैसे है ९” परमार्थ--“भ'ई, तअज्जुब होता है । फोई कद्दता है उनकी उमर पाँच सो बरसऊकी है, कोई कहता है पाँच हज़ार घरस । पर देखनेमे निताई बाबू जैसे छूगते हे। बाबाजीसे फोई पूछता है तो वे ज़रा ईसकर जवाब देते हैँ--/उमर नामकी ससारमे कोई वस्तु ही नहीं दै। फाल/--सब्र एफ ही काल है, स्थान,-सपय एफ ही स्थान है। जो सिद्ध है, वे त्रिकाछ ओर त्रिछोफका एक ही साथ भोग फरते हैं? झीसे मान छो,--अभी सेप्तेम्बर १६२४ है; तुम हवसी-वगानमें रहते हो। विरिचि-बाना चाहें तो अभी तुम्हें अकवरफे टाइममे आगरा, था, फोर्थ सेल्चुरी वी० सी० में (ईस्थी सनसे ४०० वर्ष पहले) पाटलीपुत्र श




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