उत्तराध्ययनसूत्रम भाग - 3 | Uttaradhyayanasutram Bhag - 3

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Uttaradhyayanasutram Bhag - 3 by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्विशाध्ययनम्‌ ] हिन्दीभाषाटीकासहितम । [ पदविशधष्ययन ) _ दिल्वीभाषाडीकालदिव सा नलक्‍लिया अंगु्ं सत्तरत्तेणं, पकखेणं च हुरंगुल। वहुए हायए वावि, मासेण॑ चडरंगु्े ॥१४॥ अड्युल॑ सप्तरात्रेण, पक्षेण- च हयेगुलम्‌ । बर्धते हीयते वापि, मासेन चतुरंगुरुम ॥१४॥ '. पदार्थास्वय:;---अंगुलं-एक अंगुर सत्तस्तेणु-सात अहोगात्र से चू-और पक्खेण-पक्ष से दुरंशुढुं-दो अंगुल वा-अथवा बहुए-वृद्धि दोती हे-दक्षिणायन में हायए-दीन होता है---उत्तरायण में अवि-संभावना में सासेश-मास से चउर॑ग्रुलं- चार अंग्रुढ प्रमाण | है मूलाथ--सात अहोरात्र में एक अंगुरु, पत्त में दो अंगुल और मास में चार अंगुल प्रमाण दिन दह्षिणायन में इद्धि और उत्तरायण में हानि को प्राप्त होता है। अर्थात्‌ दक्षिणायन में बढ़ता और उत्तरायण में घटता है। “ ' ' - टीका--इस गाथा में शेष मासों की पौरुषी जानने की विधि का धर्णन किया गया है । यथा---जब सूरे दक्षिणायन में होता है, तब छ; सास तक दिन की चृद्धि होती रहती है। अर्थात्‌ कके, सिंह, कन्या, तुला, इश्विक और घन इन छः राशियों में जच सूथ होता है! तव दिन बढ़ता है; और मकर, कुम्भ, मीच, मेष, बष और मिथुन राशियों में घटता है । परन्तु इतना विचार इसमें अवश्य है कि मिथुन--आपाढ़ के तेरद अंश से दक्षिणायन और धव के---पौष के---तेरह अंशों से उत्तरायण का आरम्भ होता है। अब हानि और वृद्धि का प्रमाण बतलछाते हैं.।। यथा----सात जहोरात्र सें एक अंगुरू की वृद्धि होती है; एक पक्ष में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुरू प्रसाण दिन धढ़ता है | इसी प्रकार हानि के विषय में समझ छेना चाहिए, अर्थात्‌ एक, दो और चार अंगुल की कम्ती होती है| तथा इस कथन का संकलित भावार्थ यह हुआ कि आपाढ़ी पौर्णमासी को चौदीस अंगुरू प्रमाण छाया के आजाने पर एक पहर होता है, और श्रावण कृष्णा सप्तमी को पश्चीस अंग्रुल की छाया आने पर एक पहर होता है। तथा श्रावण कृष्ण चौदृह को छव्बीस अंगुर पर श्रावेण शुह्ा सप्तमी को सत्ताईस अंगुल और श्रावण शुह्मा चौद॒ह को अद्वाईस अंगुछ प्रमाण छाया, के आने पर एक




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