हिन्दी विश्व कोष | Hindi Vishva Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प भाणक--भाणटमतिभाएडक :हँसता आता और कोघादि-करता ज्ञाताहै | इसमें धूर्तके : »चरित्रका अनेक अधस्थाओं सहित वर्णन होता है | दीच - बीचमें कहीं फही संगोत भो होता है। इसमें शौर्य कौर ' सौभाग्य द्वारा शज्ञार रस भी सूचित होता है। संस्कृत “भाणोंमें कौशिको ग्रत्ति द्वारा कथाका बर्णन किया जाता : नर यह परायोन कोशल-राज्यक्रे अन्तभु क्त थर | प्रत्वतत्त्वविदत कनिहमने इसे शिलाछिपि कथित वाकाटक राज्य माना है। पूर्वोक्त ध्यंसावशेपक्रो छोड़ कर यहां पाश्वेनाथ, बद्रीनाथ और चण्डीदेंवीका मन्दिर विधमान है। यहांके विन्ध्यासन पर आज भो अनेक सुप्रायोन है। यह दृश्यकाव्य है। नाटक देखों। । चीडशुद्यामन्दिय्का भग्नावशेप देखनेमें आता दे । -२ ब्याज, मिस। ६ ज्ञान, बोध । | भाएडक ( स'० छो० ) क्षुद्र पात्रविशेष, छोटा भांड 1 भाणक ( स'*० पु० ) भाण पथ खायें कन्‌। भाण।.._/ भास्डगोपक (सं६ पु०) बढ जो वीद्धस॑धारामादिमें भाणकेस्थान ( स'० क्ली० ) रोमकसिद्धान्त वर्णित स्थान , “स्डादिको खक्षा करते हैं, बीद्मएडारी । भेद । | भाएडपत्ति ( सं० पु० ) चणिक्‌, व्यवसायी । भाणिक्रा (स'० ख्री०) भाण, एक अकमे समाप्त होनेवाछा भोणडपुट ( सं० पु० ) भाएडे पुदों यश््य | मापित, नाई [ दास्यरसप्रधान द्वश्पकाब्य | साएडपुष्प ( स० पु०) सर्पविशेष । पर्याय--कौपकुटि- भाएड ( स|० फ्ली०) भण्यते भणति बेति भन-शब्दे.. दल) ,(अमस्ताडुः । उण, ११३) इति ड, ततः प्रश्ञादित्वादण। “प्डम्रतिभाएडक (स'० छो० )१ विनिमय, भदछा १ वाक्ष, वरतन। मिताक्षरामें छिखा है, कि घाहक | के दोपसे यदि भाँड्‌ फूट जाय, तो उसे क्षतिपूरण फरना , दोगा। यदि देवकृत घा राजकृत फूद जाय, तो कुछ भी | नद्दों देना दवोगा । ( मिताज्ञरा० ) ३२ वणिकूका मूल घन, , पूँजो | ३ भूषा । ४ अश्वभूषा । ५ भण्डवृत्ति, भांडपन । ६ गर्दभाएडपृक्ष | ; भारएडक--पध्यप्रदैशके चन्दा ज्ञिछान्तगंत एक नगर | यह * अज्ञा० २० ७ उ० तथा देशा० ७६ ७ पू० चनन्‍्दानगरसे ६ | 'फीस उत्तर-पश्च्रिममें अवस्थित है। नगरफे पर्िचिममें एक । प्राचीन जडूल दे जो भतालासे फभरपत तक फैला हुआ है। प्रवाद है, कि यहां महामारतोऊ भद्राघतती नगरो स्थापित थी । भीमसेन यहां पर युवनाभ्य राजके साथ शुद्ध करके उनके सट्डुण नामक यक्ञलीय अश्यको हुर छे | गये थे। द्वाला पर्वत पर आज भी भीमफे पदर्चिह्व देखे | “मत हैं। ; * .'भाएडकफे गृदामन्दिर तथा दिवाछा और विन्ध्यासन परतके - मन्द्रादि, गिरिदुर्ग, अद्वावनोके मन्दिण, ,» राजप्रासादकी धर सावशेपमित्ति, निकटस्थ हृद्दोपरिस्थ 'पेप्ु और सैकर्डों मन्द्रिदिके ध्यंसावशेषसे यहांझा प्राचीन सझुद्धिफा विषय ज्ञाना जाता है। असी इसकी घह समृद्धि अपदृत दो गई है । । जैन दरियंशर्म इस प्राचीन नगरका उल्लेख दै। बदछा । २ लीलावत्युक्त अट्डुविशेष। इसका नियम इस प्रकार है,--विनिमय प्रक्रियाक्रा फल तैरासिकफे अमु- सार और अपेक्षारत सहजमें ज्ञाना ज्ञता है। अन्यान्य विपयो्मिं बहुराशिकके साथ इस अक्रियाक्रा सम्पूर्ण ऐक्य हैं । विशेषता फेबल इतनी ही है, कि दोनों श्रेणी: के फल और हस्को घितिमपक्री तरह इसमें मृल्यका भी परिवत्तन करना द्वोता है । तोचे इसका पक उदाहरण दिया ज्ञाता है,-- यदि ३०० भनारका मूल्य १६४० और ३० आमका १ ० हो, तो १० अनारके ददलेमें कितने आम मिलेंगे ! ३०० ३० परिवर्सन ४ श्द्द ३. रे०० ३३ ११ १ शरद १० - ३००+ ४८०० गुणनफल भागफल १६ अथवा ३०० अनारका द्वाम यद्वि १६ र० दो, तो १० का दाम कितना होगा १ इससे १० अनास्फा दाम १६६८८१० _ गा फ़र बा ८ हुए आना जाना गषा 1 7 ३० आमका दान ३ छ० दोनेसे दक आपका दाम २ पैसा छुआ। अद देयना चादिये, कि शआमका दाम १० अनारके मध्य कितनो बार शामिल हैंः--. 9. «*




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