श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 1] | Shri Abhidhan Rajendra Kosh [Bhag 1]

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Shri Abhidhan Rajendra Kosh [Bhag 1] by विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी - Vijayrajendra surishwarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की अतिष्ठा करायी । सस्वत्‌ १ए३४ राजगढ़, १३५ रतलाम, १ए३६ ज्ञीनमाक्ष, १९३५ शिवगंज, १०३७ आलीराजपुर, १ए१ए कूगसी, १९४० राजगढ़, ओर १९४१ का चोमासा शहर अहम- दावाद में हुआ। इस चोमासे में आत्मारामजी के साथ पत्रष्यारा चर्चा वार्ता हुई और बहुत धार्मिक उन्नति जी हुई। सम्बत्‌ १०४५ घोराजी, १ए४७३ घानेरा,और १९४७ का चोमासा“थराद'में हुआ। यहाँ श्रीजग- वतीजी सूत्र व्याख्यान में वाँचा गया, जिसपर सडूघ ने जारी जत्सव किया ओरे प्रति प्रश्न तथा उत्तर की पूजा की । सं ० १९४५वीरमगाँम,ओर १ए४६का चोमासा सियाणा में हुआ,इस चौमासे में 'अजिधानराजेन्द कोष' बनाने का आरम्भ किया गया। सं० १ए४७ में गुरा, १९४७ आ- होर, ओर १०४९ का चौमासा “ निबाहेझा ' में हुआ । इसमें दूँढकपन्थियों के पूज्य न- न्द्रामजी के साथ चर्चा हुई. जिसमें दृढियों को परास्त करके साठ ६० घर मन्दिरसार्गी ब- नाये । सं० १ए५० खाचरोद, १९५१ ओर १ए५५ का चोमासा “ अन्िधानराजेन्दकोष ' के काम चलने से राजगढ़ढी में हुए । सं० १ए५३ में चोमासा शहर “ जावरे ? में हुआ, यहाँ कातिक महीने में बड़े समारोह के साथ संघ की तरफ से अट्ठाई महोत्सव किया गया, जि- समें घीस हजार रुपये खचे हुए और विपक्षी लोगों को अच्छी रीति से शिक्षा दीगयी . जि- ससे जेन धघम्म की बहुत जारी उन्नति हुई । सं० १९५४ का चोमासा शहर रतक्षाम में हुआ, यहाँ नी अछा£ महोत्सव बसे धूमधाम से हुआ, जिस पर करीब दश हजार श्रावक ओर आविकाएँ आपके दशन करने को आई, ओर संघ की ओर से उनकी ज्क्ति पृ रूप से हुई, जिसमें सब खचे करीब बीस हजार के हुआ, विशेष प्रशंसनीय बात यह हुई कि पाखएमी लोगों को पूर्ण रूप से शिक्षा दी गयी, जिससे आपको बम यश प्राप्त हुआ । सस्वत्‌ १ए५५ का चोमासा मारवाड़ देश के शहर “आहोर' में हुआ, एस चोमासे में ज़ी धामिक उन्नति विशेष प्रकार से हुए ओर इसी वर्ष में श्रीआहोरसंघ की तरफ से '“श्रीगो- मीपाश्रेनाथजी ” के बावन ५५ जिनालय (जिनमंदिर) की प्रतिष्ठा और अञह्जनशल्लाका आ- पढ़ी के करकमसलों से करायी गयी, जिसके उत्सव पर करीब पचास हजार श्रावक शआआा- विकाएँ आई ओर मन्दिर में एक लाख रुपयों की आमद हुए। एस अज्जनशलाका में नो सो ९७०० जिनेन्दबिम्बों की अज्जनशलाका की गयी थी, इतना जारी उत्सव मारवाम में पढिल पहिल यही हुआ। इतने मनुष्यों के एकन्न दोने पर जी कुढ जी किसीकी जो हानि नहीं हुई यह सब प्रज़ाव आपदी का था। सं० १ए५६ का चोमासा शहर शिवगज्ज में हुआ। जिर में अपने गच्छ की मयोदा बिगमुने न पावे इस लिये एस चोमासे में आपने साधु ओर श्रा- चक संबन्धी पेंतीस सामाचारी ( कल्ममें ) जाहर कीं, जिसके मुताबिक आजकल आपका साथु, साध्वी, ्रावक, श्राविकारूप चतुविध संघ बर्ताव कर रहा है। सम्वत्‌ १ए५३ का चोमासा शहर सियाणा में हुआ। यहाँ श्रीसंघ की तरफ से मद़ाराज




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