नेम वाणी | Nem Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चोथे पद नमो उवज्काया, नवमें पद करो तप मन व्हाया।
दूजे पद सिद्ध वेग चरो । नवपद को- भवियण ** ।|४
ञ+
इण पर जाप जपे जग में, घर बैठा भूप पडे पग में ।
परदेश भटकता काँई फिरो + नवकार को भवियण* * | ४
आ्रा दुश्मन दूर से पाय पड़े, वलि भूत प्रेत तो नाहि श्रड़े ।
तो विषम स्थान स॑ काँई डरो । नवपद को भवियण ** ॥७
जे
रोग शोग आदि संकट चूरे, वलि सर्वादिक विष जाय दूरे |
लक्ष्मी बढ़े वलि विघन हरो । नवपद को भवियण,., ॥८
यो अष्टक नेप्त मृन्ति ने कह्यो, जो प्रात पढे ज्याँरो कष्ट गयो ।
श्री पृज्य पुतम परशाद तरो। नवपद को भ्वियण ” ॥&
चेत्र आसोज सुद सातम ने, नव आयम्बिल पूरे पुतम ने ।
साढे चार वर्ष लग तप करो । नवप॒द को भवियण””* ॥१०
नव आ्रायम्बिल ओली शुद्ध कियाँ, श्रीपाल भूप का कोढ गया ।
सब जाप जपो इण नव पद रो । नवपद को भवियण' ॥११'
१. श्रीपाल चरित्र के भश्राघार से
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