नेम वाणी | Nem Vani

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Nem Vani by नेमिचन्द्र जी महाराज - Nemichandra Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चोथे पद नमो उवज्काया, नवमें पद करो तप मन व्हाया। दूजे पद सिद्ध वेग चरो । नवपद को- भवियण ** ।|४ ञ+ इण पर जाप जपे जग में, घर बैठा भूप पडे पग में । परदेश भटकता काँई फिरो + नवकार को भवियण* * | ४ आ्रा दुश्मन दूर से पाय पड़े, वलि भूत प्रेत तो नाहि श्रड़े । तो विषम स्थान स॑ काँई डरो । नवपद को भवियण ** ॥७ जे रोग शोग आदि संकट चूरे, वलि सर्वादिक विष जाय दूरे | लक्ष्मी बढ़े वलि विघन हरो । नवपद को भवियण,., ॥८ यो अष्टक नेप्त मृन्ति ने कह्यो, जो प्रात पढे ज्याँरो कष्ट गयो । श्री पृज्य पुतम परशाद तरो। नवपद को भ्वियण ” ॥& चेत्र आसोज सुद सातम ने, नव आयम्बिल पूरे पुतम ने । साढे चार वर्ष लग तप करो । नवप॒द को भवियण””* ॥१० नव आ्रायम्बिल ओली शुद्ध कियाँ, श्रीपाल भूप का कोढ गया । सब जाप जपो इण नव पद रो । नवपद को भवियण' ॥११' १. श्रीपाल चरित्र के भश्राघार से [नी




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