नृत्यरत्न कोश भाग - 1 | Nrityaratn Kosh Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रसिकलाल छोटालाल परिख - Rasiklal Chhotalal Parikh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर
राजखान सरकार हारा प्रय्ापित
राजस्थानमें प्राचीन साहिलके संग्रह, संरक्षण, संशी'पन
और प्रकाशन कार्यका महत प्रतिष्ठान
राजस्थानता सुविशाल प्रदेश, अनेमानेऊ शताब्दियोसे भारतका एक हृदयखरूप स्थान बना हुआ
होनेसे विभिन्न जनपदीय सस्कृतियोका यह एफ केंद्रीय एव समन्वय भूमि सा सस्थान बना हुआ है।
प्राचीनतम आदिफ्रालीन वनवासी भिछादि जातियोऊे साथ, इतिहासयुगीन आये जातिफे भिन्न भिन्न
जनसमूहोऊा यह प्रिय प्रदेश यना हआ है। वैदिक, जन, यौद्र, रौय, भागयत एप शाक्त आदि नाना प्रशरके
धामिक तया दाशेनिऊ सप्रदायोकफे अनुयायी जनो शा यहा स्वम्थ और सहिष्णुतापूण सन्तिवेश हुआ है ।
कालकमानुसार भौये, शऊ, क्षयप, गुप्त, हुण, प्रतिहार, ग्रहिलोत, परमार, चालफ्य, चाहमान, राष्ट्रयूट
आदि भिन्न भिन्न राजपशोफी राज्यमसत्ताए इस प्रदेशमे स्थापित होती गई और उनके शासनकालमे यहाकी
जनसस्क्ृति और राष्ट्रगम्पत्ति ययेष्ट रूपमे तिऊूसित और समुन्नत बनती रही। लोगोफी सुस-समृद्धिके
साथ विद्यावानोकी विद्योपासना भी वैसी ही प्रगतिशील बनी रही, जिसके परिणाममे, समयानुसार,
सस्क्ृत, प्राकृत, अपभ्रश और देश्य भाषाओमे असख्य ग्रयोफी रचनारूप साहित्यिक समृद्धि भी इस
प्रदेशमे विपुल प्रमाणमे निर्मित होती गई ।
इस प्रदेशमे रहनेवाठी जनताका सास्क्ृतिक: और आध्यात्मिक अनुराग अदभुत रहा है, और
इसके कारण राजस्थानके गाय-गावमे आज भी नाना प्रकारके पुरातन देवस्थानों और व्मस्थानोत
गौरपोलादक अस्तित्य हमे दृष्टिगोचर हो रहा है । राजस्थानीय जनताके इस प्रफारके उत्तम सास्क्ृतिक -
आध्यात्मिक अनुरागके कारण विद्योपासक वग्गद्वारा स्थान-स्थान पर विद्यामठो, उपाश्रयों, आभ्रमों और
देवमन्दिरोमे वास्मयात्मऊ साहिलके समग्रहरूप ज्ञानभण्डार-सरस्वतीभण्डार भी ययेष्ट परिमाणमें स्थापित
थे । ऐतिहासिक उल्लेपोफे आवरारसे ज्ञात द्ोता है कि राजस्थानके अनेकानेक प्राचीन नगर - जैसे
आधाट, शिन्षमाल, जाबालिपुर, सत्यपुर, सीरोही, बाहडमेर, नागौर, मेडता, जेसलमेर, सोजत, पाली
फलोदी, जोयपुर, बीकानेर, छुजानगढ, भटिडा, रणयभोर, माडछ, चितौड, अजमेर, नराना, आभेर,
सागानेर, किसनगढ, चूरू, फतेहपुर, सीफजर आदि सेक़ठो स्थानोमे, अच्छे अन्छे ग्रन्थभण्डार विद्यमान
थे। इन भण्डारोमे सस्क्षत, प्राकृत, अपश्रद और देश्य भाषाओमे रचे गये हजारो ग्रन्थोकी हस्तलिखित,
मूल्यवान् पोयिया संग्रहीत थी। इनमे से अय केयछ जैसलमेर जैसे कुऊ-एक स्थानोझरे ग्रन्थभण्डार ही
किसी प्रकार सुरक्षित रह पाये है । भुसलम्ॉँऔर इग्रेजो जैसे विदेशीय राज्यलोहुपोके सहारात्मऊ
आऊमणोके कारण, हमारी पह प्राचीन साहित्य-सम्पत्ति बहुत कुछ नष्ट हो गई | जो कुछ बची-खुची
थी वह भी पिछले १००-१५० वर्षो|े अन्दर, राजम्थानसे बहार - काशी, ऊकलफत्ता, बम्बई, मद्रास,
बगलोर, पूना, बडौदा, अहमदाबाद आदि स्थानोमे स्थापित नूतन साहित्यिक सस्थाओके सम्रहोंमे बडी
तादादमे जाती रही है। और तदुपरान्त युरोप एवं अमेरिझाके भिन्न भिन्न प्रन्थालयोंमे भी हजारो
प्रन््थ राजस्थानसे पहुचते रहे है । इस प्रश्र यद्यपि राजस्थानका प्राचीन साहित्य भण्डार एक प्रझारसे
अब खाली हो गया है, तथापि, खोज करने पर, अब भी हजारो प्रन्य यत्रतत्र उपलब्ध हो रहे हैं जो
राजस्थानक्रे लिये नितान्त अमूल्य निवि खरूप हो कर अत्यन्त ही सुरक्षणीय एवं सम्रहणीय हैं ।
२]
User Reviews
No Reviews | Add Yours...