अनर्घराघवम | Anargharaghavam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
79 MB
कुल पष्ठ :
547
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० अनधराघवम्
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नाम नाटकम् | तत्ययुज्ञाना' सामाजिकानुपास्महे | ( विचिन्त्य सहषम् । )
अहा रसमणीया खल्विय सामग्री परिषदाराधनस्य | यत --
मदहत्यों रसपाठगीतिगतिषु प्रत्येकमुत्कर्षिणो
मोदल्यस्थ कवेगमीरमधुरोहारा गिरा व्यूतय-
वीरोदात्तगुणोत्तरों रघुपति- काव्याथंबीज मुनि
वॉल्मीकिः फलति सम यस्य चरितस्तोत्राय दिव्या गिरः ॥८)॥
अय तु प्राचेतसीय कथावस्तु बहुमि प्रणीतमपि श्रयुज्ञानो नाप-
अयुक्ञाना अभिनयन्त । सामाजिकान् सहृदयसभ्यान। उपास्महे-आराधयास ।
साख्य्ी--उपकरणस् । परिषदाराधनस्य-सभ्यजनसन्तोषस्य ।
मद्वर्ग्या इति मद्वग्या मम सम्पदाये वत्तमाना जना गत्येकम एकेकम् रसा
नाटकपग्रयोज्याश्श्ड्रारवीराद्य , पाठ स्वरस्वादमाधुयंम , गीति सद्जीतशञ्ज तेषु
उत्कषिण उत्कर्षवन्त , मोदगल्यस्थ मोदूल्यगोत्रोत्पन्नस्य कवेमेरारिनाम्न गिरा
व्यूतय चाग्विस्तता गभीरा अर्थगौरवपूर्णा मथुरा मनोहराश्व उद्घारा उत्तयों
यासु ताइश्य अथगारवपूर्णा मनोहराश्रेत्यथ । धीरोदात्तगुणोत्तर धीरोदात्त-
श्रष्ट रघुपतिश्र काव्यायबीजम् काव्ये वर्णीयतया तद्र्थमूलम् , यस्य रघुपते
रामस्य चरितस्तोत्राय कीत्तिस्तुतये वाल्मीकिनांम मुनि दिव्या अमानुषी गिर
वाच फलति सम आविशशांवयति सम । एतेन सामग्रीपूर्णता द्योतिता, नटकविकाव्य-
वस्तुकविभाषाणासुत्कृष्टया अवन्धाभिनयसामग्रीपूत्तिरस्तीति भाव । “अवि-
कत्थन क्षमावानतिगम्भीरों महासत्त्व । स्थेयात्रिगूढमानो धीरोदात्तो दृढचत
कथित ॥? इति धीरोदात्तलच्षणम् ॥ ८ ॥
अयम् मुरारि.। आचेतर्सीयम वाल्मीकिकृतम् । कथावस्तु चरितम्। बहमि-
माताके गभसे उत्पन्न मुरारिक्त अनधेराधव नाटक है। उसीके अभिनयद्वारा सामाजिकां
का अनुरञ्षन किया जाय । क्योंकि--
मेरे सहकमी रससूष्टि, पदपाठ, गीौतिकला, सभी नाव्याड्रोंमें एकसे एक बढकर
सिद्धइस्त हे, मोद्गल्यकवि मुगरिकी कविता गर्भार मा है, काव्यके
नायक वीर तथा उदात्तशुण-मण्डित भगवान् रामचन्द्र जिनके चरित की प्रश्सामें
वाल्मीकिने दिव्यवाणीका प्रयोग सफल किया है ॥ ८ है
यह ओज्ियपुत्र मुरारि यदि वाल्मोकिदारा अयुक्त कथावस्तुका उपयोग करता है तो
लटकन तन यननमन नमन रमन मन नी भनल भा नली तन नम न + मन रन नी नम पजन ५ नपनलन- पहन न (जल नी रन प नमन जी परम ९क नाप प टी पते रन टपजर फनी पटरी पे ल् रजनी पर न्न्ननम ३ तह. «री पार प०>म वन मनन रहा तन ग मन थान मत
१. 'स्यूतय इति पाठान्तरम् 4. २५ वीरोदात्त-? इति ।
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