अनर्घराघवम | Anargharaghavam

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Anargharaghavam by श्री रामचन्द्र मिश्र - Sri Ramchandra Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० अनधराघवम्‌ वडन्कि अफिडाररिकरके: अकाली तिीतीपितपिकन्रीक फेल शेशनर फिट ० जि पिहजि पन्‍्षण फ दिडा्जिए रिकपर्ि/ रि>ात फि पि//ह रत शिदषकारिए सिम पिद्रापरिक रैक किक कह नाम नाटकम्‌ | तत्ययुज्ञाना' सामाजिकानुपास्महे | ( विचिन्त्य सहषम्‌ । ) अहा रसमणीया खल्विय सामग्री परिषदाराधनस्य | यत -- मदहत्यों रसपाठगीतिगतिषु प्रत्येकमुत्कर्षिणो मोदल्यस्थ कवेगमीरमधुरोहारा गिरा व्यूतय- वीरोदात्तगुणोत्तरों रघुपति- काव्याथंबीज मुनि वॉल्मीकिः फलति सम यस्य चरितस्तोत्राय दिव्या गिरः ॥८)॥ अय तु प्राचेतसीय कथावस्तु बहुमि प्रणीतमपि श्रयुज्ञानो नाप- अयुक्ञाना अभिनयन्त । सामाजिकान्‌ सहृदयसभ्यान। उपास्महे-आराधयास । साख्य्ी--उपकरणस्‌ । परिषदाराधनस्य-सभ्यजनसन्तोषस्य । मद्वर्ग्या इति मद्वग्या मम सम्पदाये वत्तमाना जना गत्येकम एकेकम्‌ रसा नाटकपग्रयोज्याश्श्ड्रारवीराद्य , पाठ स्वरस्वादमाधुयंम , गीति सद्जीतशञ्ज तेषु उत्कषिण उत्कर्षवन्त , मोदगल्यस्थ मोदूल्यगोत्रोत्पन्नस्य कवेमेरारिनाम्न गिरा व्यूतय चाग्विस्तता गभीरा अर्थगौरवपूर्णा मथुरा मनोहराश्व उद्घारा उत्तयों यासु ताइश्य अथगारवपूर्णा मनोहराश्रेत्यथ । धीरोदात्तगुणोत्तर धीरोदात्त- श्रष्ट रघुपतिश्र काव्यायबीजम्‌ काव्ये वर्णीयतया तद्र्थमूलम्‌ , यस्य रघुपते रामस्य चरितस्तोत्राय कीत्तिस्तुतये वाल्मीकिनांम मुनि दिव्या अमानुषी गिर वाच फलति सम आविशशांवयति सम । एतेन सामग्रीपूर्णता द्योतिता, नटकविकाव्य- वस्तुकविभाषाणासुत्कृष्टया अवन्धाभिनयसामग्रीपूत्तिरस्तीति भाव । “अवि- कत्थन क्षमावानतिगम्भीरों महासत्त्व । स्थेयात्रिगूढमानो धीरोदात्तो दृढचत कथित ॥? इति धीरोदात्तलच्षणम्‌ ॥ ८ ॥ अयम्‌ मुरारि.। आचेतर्सीयम वाल्मीकिकृतम्‌ । कथावस्तु चरितम्‌। बहमि- माताके गभसे उत्पन्न मुरारिक्त अनधेराधव नाटक है। उसीके अभिनयद्वारा सामाजिकां का अनुरञ्षन किया जाय । क्योंकि-- मेरे सहकमी रससूष्टि, पदपाठ, गीौतिकला, सभी नाव्याड्रोंमें एकसे एक बढकर सिद्धइस्त हे, मोद्गल्यकवि मुगरिकी कविता गर्भार मा है, काव्यके नायक वीर तथा उदात्तशुण-मण्डित भगवान्‌ रामचन्द्र जिनके चरित की प्रश्सामें वाल्मीकिने दिव्यवाणीका प्रयोग सफल किया है ॥ ८ है यह ओज्ियपुत्र मुरारि यदि वाल्मोकिदारा अयुक्त कथावस्तुका उपयोग करता है तो लटकन तन यननमन नमन रमन मन नी भनल भा नली तन नम न + मन रन नी नम पजन ५ नपनलन- पहन न (जल नी रन प नमन जी परम ९क नाप प टी पते रन टपजर फनी पटरी पे ल्‍ रजनी पर न्‍न्‍ननम ३ तह. «री पार प०>म वन मनन रहा तन ग मन थान मत १. 'स्यूतय इति पाठान्तरम्‌ 4. २५ वीरोदात्त-? इति ।




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