प्रेमचन्द के नारी - पात्र | Premachand Ke Nari - Patr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेमअन्द-पूर्व हिल्दी-उपस्पास में सारी-चित्रण र्ृ स्यभिषारातुमतु: एत्री लोक़े प्रत्णोति शिश्दताम्‌ | झुबालमोरिश्चाप्तोति भापरोपैक्य पौरपते ॥7 'दसित कुसुम' कौ भूमिका में प्रकाशक रामह्ण वर्मा सिछते हैं-- हमारे इंध डी प्रार्मकुल लक्षता्ों का पाठिप्रत प्रव लो सूमभ्डल में गिष्कलंक आर्साक जी जिमल कौमुदी बत्‌ विभाधित हो रहा है। हमारे यहाँ का पातिद्रत हम भारतजासियों का प्रधान बौरब-स्वल है कि लिसे पड़ प्लौर सु कर इदूप्तरे देशों की प्रवन्नाएँ सजाती भ्रौर पछ्ठताती है। ऐसे देस की स्त्रियों क॑ भ्रमण बबल कीर्थिपूंच को कह्पित कस्पना से स्वयं कछुपित करना बृद्धिमानी ल्दी है। 'परीका गुद' का 'पतिप्रता' प्रकरण भी इस दृष्टि से पठतीय है । “प्रणक्षिप्ता फूल” मैं भी कहा मया है कि “झो प्रपने पति कौ बात सहौँ मातती उसका भक्वा कमी गहीं होता । * इस प्रकार इस समी सामाजिक उपम्पासों में “प्रबाध्रों के प्रष्ति पातिद्रत के! उपबेल मरे पड़े है। “पसार में इससे बढ़ कर कोर दुल् लहीं कि सहपमिसी दुष्ट मिले * प्रौर “मसे ही स्वामी दुष्टी कुचासी कर्कप श्रौर क्रेधी क्यों न हो डिन्तु स्त्री को झा पर प्रणस मक्ति रक्षता ही मुख्य इमे है। * 'परीक्षा मु' में परिसीता क्य एक प्रश्व सुन्दर पदा भी उभरा है। मधम- मोह ढौ पत्ती प्रारर्कष पत्ती होते हुए भी एक बूसरे पुरुष शत किशोर को प्रपते जौवत में धर्म-भाई का दर्शा देती है। तारी सावता का मह विस्तार प्रमचस्द पून रपश्वास में प्रस्पतम है। 'परीक्षागुद' छी बह स्यापक भावना नित्य ही एक महान्‌ उपसब्धि है । परिणीता-हुप में पत्नी द्वारा पदि-सुशार एवं बारी के परोपकारी झप के दर्शभ प्री कथी-कमी हो जाते हैं। दलित कुसुम! की कुसुम' भ्पने भ्राचरणो के रामनाष को भुमार्य पर लाती है। रामनाब के इस कबत में कि “कुसुम का इतना ही कहता है कि छ॒शु हो भा मित्र सब को यही टौर मिप्ते --मारी के सहय स्नेहपीश एवं परोपकारी हृदप का परिचम मिलता है । 'िठ डिस्दी का ठा5' में प्रपोष्पाशिह पपाष्याय ने श्रतमेल बिगाहुकौ समसस्‍्पा को भी उम्दा है, ढिम्तु दृष्टि मूलतः पापा पर ही केश्टित होने के ह इक्ित कुम श्रर्तिम्मसार प्री व. ३१३ १. ऋषफिशा फूल पशोस्यासिह रुवाध्यात ३ एषाऋध्य शम्नस्इन पृ श्र ४ दुहित कृत्रम अरत्िइ प्रसाहपजी पृ १४




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