श्री गुरुजी समग्र खंड 6 | Shri Guriji Samrg Khand 6
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसके कोमल अत करण पर प्रभाव डालते रहेंगे, चारों ओर के उसे प्रिय
एवं आदरणीय व्यक्ति व्यवहार करते रहेंगे, वैसा ही उसका जीवन बनेगा।
बहुत काल तक जो ससस््कार उसे प्रभावित करते रहेंगे, उनका उसपर अमिट
परिणाम होकर उन्हीं का वह जीवन-भर अपने आचरण में आविष्कार
करेगा। एक वार इस कोमल, सस्कार-सुलभ अवस्था में उसने अपने
अत करण की बनाया, तो फिर उत्तरायुष्य में लाख प्रयत्न करने पर भी
उनसे छुटकारा पाना या उनमें परिवर्तन करना उसके लिए असभव होगा।
फलत मानव-समाज की प्रगति की दृष्टि से बालक की शिक्षा-दीक्षा का
महत्त्व अत्यत श्रेष्ठ है। इसलिए अपने-अपने समाज की भलाई चाहनेवालों
को इस प्रश्न को सर्वप्रथम स्थान देकर इसपर सागोपाग विचार करने की
आवश्यकता है।
शरकाए रप
जिन सस्कारों के कारण व्यक्ति का जीवन बनता है, उनके दो
प्रमुख विभाग किए जा सकते हैं। एक तो आनुवशिक और दूसरे जो उसके
वैयक्तिक जीवन में उसे प्राप्त होते हें। इनमें प्रथम विभाग के दो प्रकार माने
जा सकते हैं। जिस समाज में चालक जन्म लेता है, उसकी सामूहिक
जीवनधारा के कारण सपूर्ण समाज के कुछ सामान्य गरुणधर्म, जीवन-दृष्टि,
जीवन का लक्ष्य, इस लक्ष्य की उपासना के कारण स्वाभाविक रीति से
गुणावगुण, पुण्य-पाप आदि का सहज सिद्ध विवेक इत्यादि का जन्मसिद्ध
सस्कार उसकी बुद्धि पर पडता है। इसकी अभिव्यक्ति कम-अधिक परिणाम
में समाज में जन्म पाए हुए प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होती है। योग्य
वायुमडल प्राप्त होने पर इन ससकारों में से श्रेष्ठ, कनिष्ठ या मिश्र सस्कार
भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में प्रकट होते रहते हें। यह एक प्रकार है। दूसरा,
जिन माता-पिता से वह जन्म पाता है, उनके विशिष्ट सस्कार, गरुणावशुण
तथा रहन-सहन। इस प्रकार का महत्त्व इतना है कि एक तत्त्वज्ञ ने कुछ
विचित्र-सा शब्द प्रयोग कर लिखा है (8 ग्राभा आपात 08 एथ/ गर्व 116
सा००९ ० ॥5थ्थया5” जिसका स्पष्ट अर्थ यह है कि माता-पिता के सस्कार
आदि के परिणाम से छुटकारा पाना किसी के लिए सभव नहीं है। इन
आनुवशिक ससस््कारों के ऊपर किसी का नियत्रण चलना कठिन है।
शष्ट्वीय परिप्रेक्ष्य मे बालविकाश
इन दो प्रकारों के आनुवशिक ससकारों से मुक्त होना यद्यपि कठिन
श्री शुरुछी समझ खड ८ श्ध
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