जियो तो ऐसे जियो | Jiyo To Aise Jiyo
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध्यान से सुन रहे थे। दोनो पुराने कार्यकर्ता थे। पर वापा में
इतना धेये कहां ! वे एकदम चाप पर बरस पडे, “आप इतना समय
मष्ट कर रहै हैं । इनके साथ सहानुभूति का व्यवहार विलकुल
सही करना चाहिए । इन्हे तो एकदम जेल भेज देना चाहिए।
जितत स्वाथपूति करनी दै, उसे सेवा के प्रवित्र पथ से हट जाना
चाहिए।”* ०
4 दयलते-यल्छते राह बन् रा
कया आप एकदम तैयार हैं?” नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से
आश्वयपु्ण मुद्रा में सैनिक ने पूछा ।
मैं हर समय तैयार रहता हूँ ।” सहज मुसकान के साथ
सुमापचद्ध बोस ने उत्तर दिया--“आखिर मेरा सेब कुछ जब
मातृभूमिं कै निए समित है तब देसी सिता भी चाहिए न!
उस समय रात्रि के आठ यजे थे, जब आजाद हिन्द फौज
का एक सैनिक उे एक कार्यक्रम के लिए बुलाने आया था।
उसने सोचा था कि दिन भर के थके हारे सुभाष भव विश्राम
की सुद्रा मे होगे और उन्हे तैयार होने मे कुछ देर लगेगी ।
लेकिन उसे यह देखकर आइचयें हुआ कि अपना सैनिक वेश
पहुने हुए ही वे बिस्तर पर लेट गये थे ।
“चकित-से क्यो हो, मित्र ” सुभाष वाबू ने पूछा, “इस
जीवन मे मेरे लिए पूर्ण विश्राम नही है, इसलिए ऐसे ही थोडा
माराम फर नेता हुं ताकि किसी भी क्षण महीं भी जाने की
तैयारी मे समय नष्ट न हो ।”
युवा सैनिक नतमस्तक हो गया, अपने नेता वी यह
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