विज्ञान और दर्शन | Vigyan Aur Darshan

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Vigyan Aur Darshan by नन्दकिशोर आचार्य - Nandkishore Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्शन का कार्य एक समग्र के रूप में अस्तित्व की व्याख्या करना है। अस्तित्व की व्याख्या के लिए अस्तित्व के ज्ञान की आवश्यकता होतो है। अस्तित्व की विभिन्‍न अवस्थाओं के बारे म ज्ञान विज्ञान की विभिन्‍न शाखाओं क माध्यम स॑ ही सम्भव है। दर्शन का कार्य वैज्ञानिक चान के सम्पूर्ण समूद को प्रकृति और जीवन के एक व्यापक सिद्धान्त में समायोजित करना है। विज्ञापर का कार्य वर्णन करना है और दर्शन का व्याख्या करना। इसांलिए दर्शन को विज्ञानों का विज्ञान कहा जाता है। लेकित आज भी यह दावा करने वाले दार्शनिक हैं कि बिना अडा के भी आमलेट बनाया जा सकता है, कि दर्शन का कार्य वैज्ञानिक शोध द्वारा प्रदत्त सामग्री का प्रकृति और जीवन के एक सिद्धान्त के रूप में विकास नहीं बल्कि वैज्ञानिक ज्ञान के लिए प्रतिमाव तैयार करना है। व्हाइटहेड उन्हीं में से एक है। अपनी पुस्तक साइन्स एण्ड दि मॉर्डर्न बर्वर्द' की भूमिका में वह लिसता है. अपना एक क्रियाशीलता में दर्शन ब्रह्माण्डिकी का आलांचक है। उस का कार्य वस्तुआं की प्रकृति से सम्बंधित विभिन्‍न अन्तर्बोधों का समन्वयन पुनर्गठन और वैधीकरण है। उसे परम प्रत्ययों की सवीक्षा तथा हमारा ब्रह्माण्डीय योजना को निरूपित करने में सम्पूर्ण साक्ष्य के अवधारण का आग्रह करना होगा। यदि दर्शन के कार्य के बारे में मेरा मन्तव्य सही है. तो वह सभी बौद्धिक क्रियाशोलताओं में सर्वाधिक प्रभावी है। वह कारीगरों के एक पत्थर उठाने तक से पहले एक कैथड्ल बना चुकता है, और उस की मंहराब्रों के गिरने से पूर्व उसे नष्ट भा कर चुका होता है। वह आत्मा की इमारतों का स्थपत्ति है, और वह उन का विलायक भी है और आध्यात्मिक भौतिक का पूर्वगामी है। आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्त दर्शन के इन दावों को चुनौतो देते हैं। दूसरी और दार्शनिक क॑ दावा से विकसित सरचनाओं में उहें बुना भो गया हो सकता है। लेकिन उब का वास्तविक दार्शीक महत्त्व बिल्कुल भिन्‍न हो सकता है। उस महत्त्व को किहीं वैज्ञानिकों के व्यक्तियत पूर्वग्रहों और अभिरचियों से भ्रमित नहीं होने देना चाहिए। जब भौतिकी आध्यात्मिक क्षेत्र पर आक्रमण करती है तो वह अपने को रहस्यवाद को नहीं म्ौंप देता। इस के विपरात भौतिकी के अधिकार-द्षेत्र में आ जाने पर अभौतिक सवर्ग भो रहस्यमय नहों रहता निश्चय ही, अभौतिक समस्याओं पर आक्रमण करन में भौतिकीय शोध के पुराने अस्त्र काम के नहीं हैं। भौतिकी आज उन सबरगों से सम्बंधित है जो प्रत्यक्ष अनुभव की अवज्ञा करते हैं! पर्विक्षण के मूक्ष्मतम यन्त्र भी किसा काम के नहीं निकलते। गणित हां सैद्धान्तिक भौतिकी का मुख्य उपकरण है। लेकिन यणितीय प्रतीक भौतिक सत्ताआ के प्रतिनिधि हैं, हर स्थिति में ये सत्ताएँ वैधानिक के दिमाग के बाहर अस्तित्व में होता हैं। अन्यथा उच्चतर अमूर्त गणिताय तर्क द्वारा प्राप्त विष्कर्ष प्रकृति के पर्यवेक्षणीय तथ्यों से पुष्ट नहों हो सकते। गणितीय समाकरण सोसले अभिसमय नहीं हैं। वे भौतिक घटनाओं के सम्बंधों का वणन करते हैं। विचान और दर्शन 25




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