आत्मासाक्षात्कार की कसौटी | Aatma Sakshatkar Ki Kasauti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बाबा नगीनासिंह आत्मदर्शी - Baba Naginasingh Aatmdarshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका श्ध
इसी सत्य से हो आगेषित है । और इस हेतु कि आरोपण या
मॉँग में आरोपित वस्तु वास्तय में तुन्छ या मिथ्यामात्र होती है.
इसलिये वास्तव म॒ मैं अग्त्तिवन नहीं हैं और अन्धक्रार
या शूल्यमात्र हूँ । और यह घारणा इसलिय मुझफो हो गई कि
अ नन््दमय काप में जो स्पामीजी के उपनेश से प्रवेश हो चुका था
अआज्ञन जन्य यल्न्ना स अउने आपको क्यल अन्धकार और
फ्पल मिथ्यारूप दखता सा हो गया, जो अवस्था वास्तव में
अज्ञान की है ।
(+४ ) इस छूचध्या में मुझगो एक प्रिचिच्र अद्वेतबाद
का तत्त्य अनुभव हुआ , »र्थात् सत्यस्वरूप कर्चा शअनुभूष हता,
और अत्मायत्र मन्न म लूम हाता था बरन् प्रत्यक वस्तु में
जो क्रियामाणता दख्ता था, उमर सत स प्रेरित देसता, और
अत्येक वस्तु का कुछ म से कुछ को कारण और कुछ को कस
या क्मंफल देखता, और इस, पर सूफी मह नुभावों ने कमों की
एकता फा समत क्या है। और ध्सस विचप्र विधित्र अब
स्थाएँ दिसाई दीं चिसका विकतृुत जिवरण बहल है। अन्तिम
ग्गिम यह हुआ ऊक्ि में अपने आपनो जावत दी मृतक
( छिन्दा ही मुर्ग ) समझता था ।
(०६ ) शख्त्रीय विधि क अनुसार भजन पाठ में तो श्रवृत्ति
नटटीं थी, केवल सम्यामात्र एक काल करता था, विन्तु गुरु
मानकर्जी की चाणी बडे ऋनुराग के साथ पढा फरता था, और
इसी का प.ठ भी करता था स्थोंकि यह बाणा प्रय सेरी अब्स्था
के अनुशूल थी। जेमे--/क्या जाना क्या बरमी प्यू, मेरा
थरथर पँपे बाला ज्यू ॥7 इस प्रकार के शत चहुत आनन्द दिया
परत थे और सस हनु कि ऋठय छू अवस्था में फँसा हआ था,
काल्पनिक इश्यर का भय और तम श्रतना प्रभाव जम्ताए हुए
User Reviews
No Reviews | Add Yours...