हिन्दी काव्यालंकार | Hindi Kavyalankar

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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No Information available about जगनाथप्रसाद भानु कवि - Jagnathprasad Bhanu Kavi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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» से रिशेष ज्ञान | शिसपें भेद रहते हुए भी समान घमम कहा १
जाय सो उपया है। पूर्णोपमा में उप्ेय, उपमान, वाचक और:
८ धर चारों रहते है। सस्ति सो उज्ज्वल तिय बदन को गद्य में
£ इस मझार कह सकते हैं छी का सुख दँसा उज्ज्वल हैं भैसार
८चद्र बैंसेही पठ़व से मृदू पान को इस प्रकार कह सकते हे इस्त£
(कैसे कोमल हू जैसे पठव । यथा--
करि झर सरिस सुभग भ्रुम दंदा ।
जहां उपमेय, उपमान, बाचक और धरम इनमें से एके दो
वा तौन का लोप हो उसे छुप्तोपपा नौनों, यथा---
(१) लुप्तोपणा
( गएए्ल्ष प्राप्त )
लुप्तोपम है अंग जहेँ, न््यून चारतें देख 1
विज्ञुरीसी पंकज मुखी, कनकलता तिय लेखा
यहां विजुरीमी पंफन झुस्दी धर्म छप्तोपमा भौर कनकलता
तिय राख, बायक धर्म लुप्ोपमा दे, उपया के और भी भेद ६ ।
(२) पासापपा
[ (ताँत्षापं ता शत कस )
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सानोपम उपसेय की, उपसा घहन प्रकार ।
घाल से सायस रस स॑ वाला तर धार ॥
प्राष्ठ पैक को फरने हैं। यघा--
माछ झूस भ्म गरापा | सह पदनल परच थार डा हि
प्रणरी दपूतण सपाना | पर छायश सुर्त सहस इस काना 16
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