हिन्दी काव्यालंकार | Hindi Kavyalankar

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Hindi Kavyalankar by जगनाथप्रसाद भानु कवि - Jagnathprasad Bhanu Kavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कक जब 2क लक 8 या शासक: न बक अके..तटड के. पा. ७-० अं कक के ग्रसणा- बक, क हर ४3 ६२ २४.2७. *६२ “६१२५. 2७. 23.“ ६८ 3 :२% 73. 27७७, 7 धख दिन्दी-काव्यालकार 1 [१९५] ६ ही उलला संगकक 2यलरऋ ध्तया परपनभतत हक हा ०1 बन्‍जर+ स्‍पन्‍ज+ पृर्ण+उपमा>्पूरी उपमा, उपस्समीष, मानापना, समीपता 2 » से रिशेष ज्ञान | शिसपें भेद रहते हुए भी समान घमम कहा १ जाय सो उपया है। पूर्णोपमा में उप्ेय, उपमान, वाचक और: ८ धर चारों रहते है। सस्ति सो उज्ज्वल तिय बदन को गद्य में £ इस मझार कह सकते हैं छी का सुख दँसा उज्ज्वल हैं भैसार ८चद्र बैंसेही पठ़व से मृदू पान को इस प्रकार कह सकते हे इस्त£ (कैसे कोमल हू जैसे पठव । यथा-- करि झर सरिस सुभग भ्रुम दंदा । जहां उपमेय, उपमान, बाचक और धरम इनमें से एके दो वा तौन का लोप हो उसे छुप्तोपपा नौनों, यथा--- (१) लुप्तोपणा ( गएए्ल्ष प्राप्त ) लुप्तोपम है अंग जहेँ, न्‍्यून चारतें देख 1 विज्ञुरीसी पंकज मुखी, कनकलता तिय लेखा यहां विजुरीमी पंफन झुस्दी धर्म छप्तोपमा भौर कनकलता तिय राख, बायक धर्म लुप्ोपमा दे, उपया के और भी भेद ६ । (२) पासापपा [ (ताँत्षापं ता शत कस ) कर सानोपम उपसेय की, उपसा घहन प्रकार । घाल से सायस रस स॑ वाला तर धार ॥ प्राष्ठ पैक को फरने हैं। यघा-- माछ झूस भ्म गरापा | सह पदनल परच थार डा हि प्रणरी दपूतण सपाना | पर छायश सुर्त सहस इस काना 16 दब स9 शिनया हे 1 रा सुखी ढ़ हित जड़ा 11३ हज की आ मी म के मे 30 3 30 3 3030 260 0. घ पे 295६७ ५६ 73. “६: ्ट १७८.» का है +%४७१ ०5७, 7७%. #७ 75, 5 7३. 77४0 ४५० “९५० १८ * “२१६८ ऋ के #औ ६5 आह ७१. + 5 299 2 # % / 5३. 2७ ६६१६२ ४*६२४ २5 ४७ हे ६ कक + 22% * # ६, २5० » “25७7४ ०४ $ #<$ # # अजय मे




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