पप्पू | Pappu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पप्पू 25 गुप्ता साहब और सरकार साहब के साथ पार्टी स्तर के मेरे सम्बाध । इस घटना का यहा उल्लेख केवल इसलिए किया है कि इसी के बाद मैं आाचाय की अतरग गोष्ठी का सदस्य बन सका | बिजय सिह ने घर जाकर मेटी और मरे प्रश्तो की चर्चा की अपने छोट भाई, 'उत्ताद'ं लाखन सिह से ओर शायद लाखन ने बात आगे चला दी आचाय स। सी, जब अगली बार मैं बाबू के रेस्तरा पर पहुचा तो आचाय ने अगले राज मुझे अपने घर आने का निमत्रण दिया । उन दिना ग्रैरकानूनी कम्मूमिस्ट पार्टी ओर क्म्यूनिज़्म दोनो का जिक़ बडे आदर के साथ होता था--विशेष कर शिक्षित बग मं। भगत्तिह और चद्रशेखर आज़ाद व बाद यदि कोई आतिकारी समझे जात थे तो वम्यूनिस्ट ही / मेरठ पद्य-त्र कंस वी स्मति उस समय तक ताजा थी, और आगरा में को ० महादेव नारायण टडन तथा क्शिनलाल जोशी ने युवको मे साम्यवाद को “इज़्ज़तदार' बना दिया था । आचाय का धर बाग मुजफ्फ्र खा मं था। कॉलेज के पास हो । वहा पहुचा तो 'उस्ताद तो मिले ही, भर भी कुछ “विभूतिया के दशन हुए--- सुन्दर्रासह, क्शित खाता और किच्चू। किच्चू, अर्थात्‌ टी० ऐस० बे० आचाय, पष्ठू के बडे भाई । भाई नम्बर दी । एम० एप्त स्ी० के विद्यार्थी । गठां, छरहरा बदन, क़॒द्र लम्बे और बेहद पुर मज़ाक। दस मिनिट बात कीजिए तो यारी दोस्ती पर उतर आए । मैं पहुचा तो सुदर सिह और उस्ताद म॑ आखो म इशारे हुए मौर दोना वे ओठा पर खेल उठी शरारतो मुस्कान । उधर आचाय ने भी इस मुस्कान को भाष लिया ओर मैंने भी । आचाय ने आंप तरेरकर 'शैत्तानी नही होगी! का इशारा किया ओर मैं निहायत अप्रतिम हुआ अपता सम्प्रम दुरुस्त रखने की चेष्टा करने लगा । उस दिन मुझ्नत्ते कोई विश्वेष वात नही हुई । रधर-उघर की, सामा-य शिष्टाचार बाली बातें, जो प्राय” पहली मुलाकात पर हुआ करती हैं-- कहा रहते हो, अलावा कोस की वितावो के और बया पढत है। वगेरा- वगैरा । हां, मुझे अनेक कई बाता वी यानयारी हुई उस दिन । जैसे कि, 1 श्रोडप्ण घढ्ध खतरा कलर




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