एकादश स्कन्ध | Ekadash Skandha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ ] जिस प्रकार गीताम भगवान्‌वे भक्तश्रे-्ठ सखा अजजुनकी भक्तिपर रीक्षकर उसके सामने अपना दिरू खोलकर रख दिया है, इसी प्रकार एकाद्शर्म भक्ततप्रवर सखा उद्धवकों उन्होंने विस्तारपूर्चक विविध उपदेश दिये हैं। एकादश स्कत्धके कुल ३१ अध्यायोमे--अध्याय ७ से छेकर २९ तक पूरे तेईस अध्यायोंमे फेवल भ्रीकृष्ण-उद्धव-लंबाद ही है । इसको “उद्धव- घीताः कहा जाता है। इसके सिदा श्रीवास्ुदेव-तारद-संवादमे राजा निमि ओर कौ योगीश्वरोका भी वड़ा ही उपदेशपूर्ण संचाद है। एकादश स्कत्धके उपदेशोंकी वर्णव-दोली बड़ी ही छुगम, खुबोध और हृद्यप्राही है। अवधूतके चौबीस ग़ुरुओंका इतिहास इसीसे है। इस स्कनन्‍्धके उपदेशोमल कुछकों भी कार्योन्वित कर छेतेसे भमनुष्य-जीवन सहज ही सफल द्वो सकता है। इसीले महात्माओंने इसको “भक्ति-स्कन्ध' भी कहा है । हिन्दी भाषाठ्चाद्सहित एकादश स्कम्धके दो संस्करण पहले प्रकाशित हो छुके हैं। पर इधर वहुत दिनोंसे यह पुस्तक अप्राप्य थी। अब भगवत्कपाले इसका यह तीखरा संस्करण स्थामीजी श्रीअखण्डानन्दजीके द्वारा की हुई हिन्दी डीकासहित प्रकाशित किया जा रहा है। फक्याणकामी पाठक-पाठिकागण इसको पढ़ें) मवन्र करें ओर इसके किक कप जीवन उतारकर यथार्थ छाम उठावें, यह विनीत निवेदन हे हसुमानप्रसाद पोदार




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