चरकसंहिता की दार्शनिक पृष्ठभूमि | Charaksanhita ki Darshnik Prishthbhumi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसका, पल ऋमाकाकाधाक रहा। इस वार भगवान्‌की कृपासे कुछ ऐसा सुयोग बना है कि शोधप्रबन्ध को प्रकाशित करानेके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोगसे मिलनेवाली राशिके लिए मैं भी चुन लिया गया हूँ। इसके लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालयके अधिकारियों तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोगके प्रति मैं अपनी हादिक कृतज्नता व्यक्त करता हूं । इस अपर्याप्त स्वल्पराशिसे प्रकाशनभारको शिरोधाय करनेवाले प्रयागस्थ पीयूष प्रकाशनका मैं आभारी हूँ, जिन्होंने अपने पाससे प्रभूत पूरकराशि मिलाकर इसको प्रकाशित किया है। ६५० टद्धितपृष्ठोंक इस विपुलकाय प्रबन्धकों निरन्तर-सझुघटन(5010-८07770भं72)के द्वारा ४०० प्ृष्ठोंके भीतर समेटनेवाले सत्य महेश प्रेसके प्रबन्धकों और कर्मचारियोंकों मैं जितना भी धन्यवाद दूँ, बह कम ही रहेगा, क्योंकि उनकी सहृदयता कार्यकुशलता और हा ही यह दुष्करकार्य निर्धारित अवधिके भीतर सम्पन्न हो सका है। इस ग्रन्थकी रचना तथा प्रकाशनके समय मेरी पत्नी विजयाने जिस मनो- योगसे मुझे गाहस्थ्यचिन्तासे विनिमुंक्त रक्खा तथा विष्न-बाधाओंको मेरे पास फटकने नहीं दिया, उसके लिए यद्यपि उन्हें औपचारिक धन्यवादकी अपेक्षा नहीं है, फिर भी ग्रन्थप्रकाशनके इस माज़लिक अवसरपर उनके प्रति कृतज्ञता- ज्ञापन करना मेरा अधिकार है। परिवारके अन्य आत्मीयजनोंने तथा वात्सह्थ- भाजन पुत्र-पुत्रियोंने अपने-अपने ढंगसे मुझे जो अपेक्षित सहयोग प्रदान किया है, हा लिए मैं उन सभीको यथोचित साधुवाद तथा आशीर्वाद वितरित करता हैं । प्रयाग शुद्धफाल्गुन शुक्ल द्वितीया, २०३६ वि० सन्‍्तनारायण श्रोवास्तथ्य




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