तत्त्व विचार | Tattv Vichar

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Tattv Vichar by ज्वाला प्रसाद - Jwala Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इईंश्वरतरव २१ परमात्मा संगुण-निराकारखरूप | भब सगुण-साकारखरूपका विवेचन किया जाता है । परमात्माका जो खरूप मायासहित है तथा इन्द्रियोंके गोचर होने योग्य आकाखान्‌ है, उसे सगुण-साकारखरूप हैं। शान्ताकार भुजगशयन पद्चनामं॑ सुरेश विश्वाधारं गगनसदर्श मेघवर्ण . शुभाइ्म । लक्ष्मीकान्त॑ कमलनयनं.. योगिभिध्योनगर्य वन्‍्दे विष्णु भवभयहरं सर्वल्ोकेकनाथम ॥ अर्थात्‌ “जिसका शान्तखरूप है, जो शेषनागकी शब्पापर शयन किये हुए है, जिसकी नाभिमें कमढ है, जो देवताओंका भी ईश्वर है तथा सम्पूर्ण विश्वका आधार है, जो आकाशके समान व्याप्त है, नीले मेघके समान जिसका वर्ण है, जिसके सम्पूर्ण अड्ड अतिशय सुन्दर हैं, जिसे योगिजन ध्यानके द्वारा प्राप्त करते हैं, उस सम्पूर्ण लोकोंके एकमात्र खामी, संसारके भयको दूर करनेवाले श्रीलक्ष्मीपति कमढनयन, विष्णुभगवान्‌को में प्रणाम करता हूँ।? .. इस प्रकारके सगुण-साकार रूपके, सम्प्रदाय और मतमेदसे, अनेकों नाम और रूप माने जाते हैं, जैंसे ब्रह्मा, शिव, सूर्य, गणेश, दुर्गा आदि | भगवानके इस रूपमेदका कारण भक्तोंके भावोंकी मिन्नता है। हिंदू-सम्प्रदायमें भावकी ही प्रधानता है; इसलिये धातुमवी, पाषाणमयी, ग्ृन्मयी, दारुमणी और मनोमयी




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