सानुवाद योगदर्शन | Sanuwad Yogdarshan

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Sanuwad Yogdarshan  by स्वामी अभयानन्द सरस्वरती - Swami Abhayanand Sarswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 भूमिका $+ | योग आदि समस्त विशद्याओं के भण्डार वेद भगवान हें जो साक्षात्‌ परम गुरू परमात्मा का सच्तया ज्ञान है, इसलिये योग फ्रे आदि गुरु और प्रथम उपरेष्टा परमात्मा हैं जैसा स्वयं वेदरमंत्र में लिखा है । युअन्तित्रप्तमरुषंचरन्तंपरितस्थुषःरोचन्ते रोचना- दिवि॥ ऋ० झ० १ । वब० ११ मे १ ॥० अथे--ज्ञा उपासऊ (व्रध्नं) बडे का ( अरूप ) डठिसा रहित ( परितस्थुषः चरन्‍तं ) मनुष्यों के हृदय को जाननेषारे परमेश्यर को ( युज्ञप्त ) योग हारा अपने आह्ना में जानने हैं ( रोचना ) प्रकाश द्वारा ( दिवि ) सूथ्ये के प्रकाश में ( रोचर्ने ) प्रकाशित होते हैं । इसी आशय को. - 5 यागीराज पतसल् भगवान्‌ लिखते हैं :-- सएपघपूर्वधासपिगुरुकाए:तानवच्छेदात्‌ू ॥ यो० पा० १ रू० २६ ॥ वह परमेश्वर पूर्व ऋषियाँ का भी शुरू है वर्योकि सह कफ्ालयक्र से रहित है। अस्तु, पहले ही पहल परमात्मा ने चेरी के हारा सृष्रि के थारम्स में चार ऋषियों (अशभ्नि, चाय, अप त्प, अड्डिरा ) द्वारा योग का उपदेश किया। श्री ब्रह्मा से वन्य ऋषि मुनियां ने योग विद्या सीखी । उसले महषि पतञजलि ने इसको पढ़कर और पूर्ण अभ्पास करके योगद्र्शन नाम से प्रसिद्ध




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