हिन्दी उपन्यास पृष्ठभूमि और परम्परा | Hindi Upanyas Prishth Bhumi Aur Parampara

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Hindi Upanyas Prishth Bhumi Aur Parampara by डॉ० बदरीदास - Dr. Badaridas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ताहना ] [२१ माप नहन्‍हों रखठा। तारा झकरतराठक्ष न टिटाज सासाबिक न्याय (१९१९) में आहाच्य कान क बाट के हुऊ प्रतिनिधि त्ववासकारों वा परिचय टिया है॥ ट्िवनाराबा छाल शखाबास्तव न हिटी तप्रयाड (१९४०) डिल्कर मवप्रथम एविहासिशद थोए फपत्यामतर आशाचना-यझवियों का समस्वय किया और एक मटान अमाव की प्रति का | विवाटमदझर व्यास की “पयासनकटा (१९८१) विटायर कौर भारठीय छायास का परिचय दही है। पया प्रसाठ पर'डेय का हिठी कया-्सादिय! (१ २१) कठिए्य कयाकरों के धाटिय का निपयामसक आहाचना डै 1 परुमहाक् पुठाछाट बक्यो कया खाटिय क॒ प्रथम आधुनिक समालाचक हैं। बाएुनिक कवायाद्धिय! (१९६५४) उसके पुरात-नय निदर्धों का सकटन है डिसमें व्यक्तित्र रुचि स गामीर सर्म था मिल गल है । द्रजरान टास ने हिन्दा-नदपयासन्सादिया (१०५६) में ठप०मन्‍्कटा और प्राचान क्या-परम्धरा पर विस्वारस विधा” छत हुए हिल्ती-जपरयात्ध का एतिहासिर ”प्टि से बछायन डिया है छ्यर प्रारम्मिक _०यासशर्शे ब्य अपक्षिव पृष्ठ टिए हैं । विनुवन बिंह का हिन्द उप्रय्रास जौर यवायवाट (१९५५) एक अभिनव प्रयास है। सिद्धान्त नाणयास कर यद्धान्विक प्रतत पर पहड़ा पुस्तअ प० अम्विकवाटच सास का श्ब्न्य मोमासा' (१८९७) है। विदाान लक न नद टूपष्टि य पता वम्तू का ट्खा इयरिए उन्हें सम्झत गदजाना में कयारत नाीं मिछा कार हगना कि सु मर बस्तु छा टस्टा इव्यलिए उन जनुसार उप्रयास छ झुर मत लन्‍चाम अबु ट छ वराह एकलाजस कछ्ाख कदानव हार, चार सो हएु। प० ज्ाप्राय प्रखाद मानु का कछात्य प्रभाकर” (११०१) में रद्यझाज्य की क्टि में उनयास का रखना जनुचित नाय क्योंकि उम्रमें नाति एड लप्रटणाडनक ट्विवा्दों नहीं था $ टा० ट्यासयूदर टास ने दाटटियानाइन (१९३२) में “या का वरदिर” बौर विवचन ठट्खन के एन दटादबाान हू € स्टणा बाऊ छिटरेचर्र के अनुसार किया पर अहोंनडट्री मोल्िकि एव विचासत्त झुक व्यास्या पर्तुत झा! उतकी परिमाषरा खारानित है. दपायाय मष्य रू दास्तदिद्म घादन छो जान्पनिझ रुया है! । डा० रमशुमार दसा का साहिए-ममाटाचना (१९३८) बात दिपय पर आन हर की रचदा हैं। पर० विश्वताय प्रदाद मिथ का दाहमंय हिमाय (३ ४२) समीला “गाज में एंड नूल्ल ब्र्याय शोटत्प है | >हीने ध्यसेद बोर प्राचात्य दिद्धास्वों का ५,




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