सर्वोदय समाज | Sarvodaya Samaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २६ के कारण उसमें उन व्यक्तियों में भी '्नुराग होने लगा जो उसके निकट रहते थे जिनते उसका सम्पक रहता था । समूह की मावना के दढ होने और सुगम के साथ जीवन बिताने की माना ने, मानव में किचिंत द्प राग की भावना को जन्म दिया। एक. समूद दूसरे के शोग्ण के द्वारा सुख पाने की इच्छा करने लगा । समूद्दों के पारस्परिक सम्वस्व हुये । संघष चर स्वाथ के इपरान्त उनसें एकता हुई । विभिसत समुदाय एक हो गये । नचोन श्रविक धिस्तत सत्र चानी सम्धाओं का जन्म हुश्ञा । छोटे छोटे राज्यों के स्थान पर चक्रर्ता राज्यों की कपना ने केन्द्रीय स्थान ले लिया । 'माधघनिक सामन्तबाद, राप्टू और उनके बाद साम्राउपों का विकास हुभझा इन सभी विकास ब्राम को यदि निप्पत्त दोकर दंखे तो दमें स्वीकार करना पड़ेगा कि सम्पूण मानव जाति के विभिन्‍न प्रवाद एक दुसरे से मिलते हुये एक पुप्ट घारा के रूप में बिकसित दाते जा रदे हैं । पहले जददां मनुष्य कुटुम्ब, समूह, माम, सत्र, नगर, प्रदेश, देश राज्यों को घना फर रहता था दद्दां अब व एक दिश्य राज्य फी ओर 'अमसर हो रदा हं । इस प्रकार दम देखते हैं कि ारम्दि धवस्था का सानव प्रेम और सद्दयोग जिसका क्षेत्र झत्यन्त संकुचित था और श्त्यग्त दिप्लित दो गया दे आज देयलिक हिंसा प्रत्येक स्थान में निधिद्र है । प्राम, ेत्र, नगर शोर प्रदेशों की दिसा सभी राष्टू ये सहन के बाद निपिद्र हो गई थी । आज तो




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