हिन्दी कौमुदी | Hindi Kaumudi

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Hindi Kaumudi by पं. अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी - Pt. Ambikaprasad Vajpayee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्धि। श्् उच्चारण बहुत अधिक होने रूगा, तव व्याकरण ग्रन्थोंमें सन्ध्रि प्रकरणको - स्थान प्रि गया। सन्धि उद्चारणकी विशेषता ठहूरायी गयी भौर संस्क्ृतवाठोने नित्य सन्धि था सन्धिकी अनिवार्य्यताकी डुद्वाई देनी आरम्भ की 1 ] [ परन्तु हिन्दीमैं नित्य सन्धि न द्वोमेपए भी उद्यारणकी विशेषताने सन्धिका प्रश्न सामने छा षड़ा किया है'। हिन्दीमें शब्दमे प्रत्यय जुड़नेपए ही सन्धि अधिक होती है, चाहे वह प्रत्यय तद्धित हो या छद॒न्‍त, लिडुअत्यय अथबा क्रियाप्रत्यय | कुछ लोग हिन्दीमें सम्धि सुनकर बहुत असनन्‍्तुष्ठ होते हैं, पर उपाय नहीं है; क्योंकि हिन्दी शब्दोंके व्यंजनान्त उद्यारणने सस्धिका मार्ग खोल दिया है। ] , , जब दो अक्षर मिलकर तीलरा रूप धारण करते हैं, तथ उस मेलको सन्धि कहते हैं। | संयुक्त अक्षए और सत्धिमें यह अन्तर है कि खंयुक्त अक्षरमें मिले हुए अक्षर रहते हैं, केचल अगले अक्षर व्यंज़नान्त हो जाते हैं, पर सन्धिमें दोनो अक्षर बदलकर तौसरा दी रूप * धारण करते हैं। ' जब दो दो अक्षरोंके शब्दोंमें सन्धि द्योती है, तव पहले शब्दके प्रथम अक्षरका रुकर यदि दीघ होता है, तो हस्थ हो जाता है। चार अक्षणेका प्रथम शब्द होनेपर तीसरे अक्षएका स्वर हस्व॑ं हो जाता. है । . यदि उसका हस्व रूप नहीं होता तो उच्चारण भ्रवश्य ही हस्व वा एकमात्रिक किया जाता है और




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