नाट्य - सुधा | Natya - Sudha

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Natya - Sudha by कैलाशनाथ भटनागर - Kailashnath Bhatanagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वप्र-वासवदत्ता ३ तापसी शक दासी से पूछ रही थी कि इसके विवाह की कहीं बातचीत हुई है या नहीं। दासी--हाँ, माता जी | उज़्यिनी के राज़ा प्रद्योत ने अपने पुत्र के लिए कहला भेजा है । इस उत्तर से वासवदत्ता को विशेष हपे हुआ। बह मन में कहने लगी कि तब ते यह अपनी ही हो गई। तापसी---ठीऊ है। इसऊी सुन्दरता बडे मान के योग्य तहै। दोनों राजकुल अत्ति प्रसिद्ध हैं । इस विपय में उदासोनता प्रकट करने के लिए पद्मावती ने कज्चुफी से पृछा--आर्य ! कोई ऐसे मुनि देसे दे जिनके अभीष्ट पूर्ण कर में अनुगृहीत होऊँ ? आप तपरिवयो से निवे दन करें कि उन्हें क्या-क्या वाब्छित है। ज्ञात होने पर बह पूर्ण किया जाय । कब्चुकी ने ऐसी ही घेपणा कर दीं। यह्ट सुञ्रवसर यौगन्धरायण के हाथ लगा। वष्ट कब्चुकी से बोला--'मेरी कुछ इच्छा दे ।? यद्द सुनकर पद्मावती ने अपना तपोवन में आना सफल समभाा। ऊज्चुकी मे याोगन्धराययण से पूछा--अ्रापक्री क्‍या इच्छा दे ९ यागन्धरायण---यह मेरी बहन है । इसका पति परदेश गया ९ै। मेरी इतनी ही इच्छा दे कि राजकन्या इसे कुछ समय तक अपने पास रप ले।




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