नाट्य - सुधा | Natya - Sudha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वप्र-वासवदत्ता ३
तापसी शक दासी से पूछ रही थी कि इसके विवाह की कहीं
बातचीत हुई है या नहीं।
दासी--हाँ, माता जी | उज़्यिनी के राज़ा प्रद्योत ने
अपने पुत्र के लिए कहला भेजा है ।
इस उत्तर से वासवदत्ता को विशेष हपे हुआ। बह
मन में कहने लगी कि तब ते यह अपनी ही हो गई।
तापसी---ठीऊ है। इसऊी सुन्दरता बडे मान के योग्य
तहै। दोनों राजकुल अत्ति प्रसिद्ध हैं ।
इस विपय में उदासोनता प्रकट करने के लिए पद्मावती
ने कज्चुफी से पृछा--आर्य ! कोई ऐसे मुनि देसे दे जिनके
अभीष्ट पूर्ण कर में अनुगृहीत होऊँ ? आप तपरिवयो से निवे
दन करें कि उन्हें क्या-क्या वाब्छित है। ज्ञात होने पर
बह पूर्ण किया जाय ।
कब्चुकी ने ऐसी ही घेपणा कर दीं। यह्ट सुञ्रवसर
यौगन्धरायण के हाथ लगा। वष्ट कब्चुकी से बोला--'मेरी
कुछ इच्छा दे ।? यद्द सुनकर पद्मावती ने अपना तपोवन में
आना सफल समभाा।
ऊज्चुकी मे याोगन्धराययण से पूछा--अ्रापक्री क्या
इच्छा दे ९
यागन्धरायण---यह मेरी बहन है । इसका पति परदेश
गया ९ै। मेरी इतनी ही इच्छा दे कि राजकन्या इसे कुछ
समय तक अपने पास रप ले।
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