समीक्षण ध्यान एक मनोविज्ञान | Samikshan Dhyan Ek Manovigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समीक्षण ध्यान ] [ ११
परमानन्द मय परमात्मा की भूलक मिल जाने दीजिए फिर मन कहॉ
भागेगा । मन को उस पावन आत्म-यात्रा का मार्ग दे दो । जहाँ उसे ऐसा
रस ग्रायेगा कि वह दौड़-दौड कर बारवार वही भागेगा । एक बार उसे
अन्तरात्मा की फलक मिली कि उसे इन्द्रियों के बाह्य विपय आकर्षित
नही कर सकेंगे, एक बार उसे परमानन्दमय-परमात्मा की झलक मिल
जाने दीजिए । फिर मन कहा भागेगा ?
इस रूप में समीक्षण ध्यान के द्वारा हम न केवल मन की शक्ति
को ही पहचानते है अपितु अपनी अन्तश्चेतना मे जो-जो शक्तियाँ छिपी
पडी है, उन्हे भी जान लेते है | इस ध्यान के द्वारा ही हम अतरग निधि
का साक्षात्कार करके दारिद्रथः को मिटाकर परम गभीर, परम श्री-
सम्पन्न वन जाते है । समीक्षण ध्यान की यह साधना गहरे मनोविज्ञान
से भी करके तत्त्व को सस्पशित करने वाली है। इसके द्वारा मन की
परिधि का तो सागोपाग विज्ञान होता ही है, किन्तु मन की परिधि से
पर रहे श्रलौकिक तत्त्व का भी साक्षात्कार हो सकता है।
इसी आधार पर ध्यान को कल्पवृक्ष, कामधेनु, चितामरिं एवं
काम कुम्भ जैसे उन्नत तत्त्व से सतुलित किया जाता है। जैसे कल्पवृक्ष,
कामधेनु, चितामणि एवं कामकुम्भ मनोवाछित फल प्रदान करने वाले है ।
उसी प्रकार समीक्षण ध्यान साधना की प्रक्रिया सब कुछ आनन्द प्रदान
करने वाली प्रक्रिया है। मनोवृत्तियो का पूर्ण समीक्षण हुआ नही कि
चेतना पूर्ण आनन्दलीन हुई नही । मन की इस परिपूर्ण आनन्दमय विश्रांति
मे ले जाने की प्रक्रिया का नाम है--समीक्षण ध्यान साधना ।
समीक्षण की पदस्थादि विधियाँ
अब जरा समीक्षण की प्रक्रिया मे प्रयुक्त पदस्थादि चारों ध्यानों की
सक्षिप्त विधि को समभने का प्रयास करेगे ।
पदस्थ ध्यान
सस्क्ृत मे पद उस शब्द रचना को कहते है जो प्रत्यय से युक्त हो
और स्पष्ट अर्थ देता हो । इसी दृष्टि से पदस्थ ध्यान में नमस्कार मन्त्र,
लोगस्य, नमोत्थुण, आगम पाठों आदि का एकाग्र चित्त से स्वस्थ मन:
स्थिति के भाव एवं अ्र्थानुसधान के साथ समीक्षण करना। आगमिक
सन्दर्भो का चिन्तन-मनन पूर्ण समीक्षण करना पदस्थ समीक्षण है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...